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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सजा हो गई। रुपया ऐंठनेके सम्बन्धमें भारतीयके वक्तव्यके समर्थन में कोई गवाही नहीं थी, किन्तु उसके विरुद्ध दो डच कैदी थे जिन्होंने जोर देकर कहा था कि उक्त भारतीय उस नारीपर बलात्कारकी चेष्टा कर रहा था। भारतीयने दृढ़तासे यह बात झूठ बताई और कहा कि उसे पहले मकान में धोखेसे ले जाया गया और तब उसपर झूठा इल्जाम लगाया गया।

ऐसी विषम परिस्थितियोंमें एक भारतीयको न्याय मिल सका, यह सार्वत्रिक बधाईका विषय है। क्योंकि इससे ब्रिटिश भारतीयोंको बहुत सन्तोष प्राप्त हुआ है। अत्यन्त प्रभावपूर्ण ढंगसे एक बार फिर साबित हो गया है, कि जहाँतक उच्च न्यायालयका सम्बन्ध है, ब्रिटिश न्यायका स्रोत यथा- संभव शुद्धतम है। निर्भय और निष्पक्ष न्यायाधीशोंकी एक दीर्घ श्रृंखलाके फलस्वरूप परम्पराएँ बन गई हैं और ब्रिटिश विधानका आन्तरिक भाग हो गई हैं। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि साम्राज्यकी सफलताके बहुत बड़े रहस्योंमें से एक रहस्य है उसकी निष्पक्ष न्याय देनेकी क्षमता। जैसे मामलेका उल्लेख हमने ऊपर किया है, वैसे मामलोंसे विविध ब्रिटिश उपनिवेशों में प्रचलित न्याय-व्यवस्थाकी अनेक त्रुटियोंकी पूर्ति होती है। ऐसी बातें प्रकाश स्तम्भकी भाँति भारतीयों और उन लोगोंको, जो अस्थायी निर्योग्यताओंसे पीड़ित और उनके परिणामस्वरूप संतप्त हों, संकेत देती हैं कि उनको तबतक आशा न छोड़नी चाहिए, जबतक तोड़े हुए वादोंकी ठंडी सतहपर शुद्ध न्यायकी तेज धूप पड़ रही है।

न्यायमूर्ति वेसेल्सने मुकदमेका खुलासा करते हुए न केवल इस मामलेपर विचार किया है। बल्कि उनको क्षुद्रसे-क्षुद्र ब्रिटिश प्रजाजनोंके पूर्ण एवं निष्पक्ष सुनवाई पानेके अधिकारका भी साधारण जिक्र करना आवश्यक जान पड़ा। उन्होंने कहा : (हम यह विवरण 'पॉचेफस्ट्रूम बजट' पत्रमें से उद्धृत कर रहे हैं) :

जब मैंने इस देशमें यह सुना — उन्होंने यह उसी अदालतमें उसी दिन सुना था — कि गोरे और कालेकी साक्षीमें जब भेद पाया जाये तब हमें गोरेकी साक्षी सत्य माननी चाहिए, तो मुझे दुःख हुआ। यह एक भ्रान्ति है, एक असत्य है। मैं समझता हूँ कि यदि अदालती पंच आज कालेके विरुद्ध गोरेके बयानको सत्य मानेंगे तो वे बहुत अनुचित काम करेंगे। हमें काले लोगोंकी स्वतन्त्रता और सम्पत्तिको रक्षा अपनी पूर्ण शक्तिसे करनी चाहिए। जब हम गोरे और काले लोगोंके हितोंपर विचार करें तो हमारे लिए एक क्षणके लिए भी न्याय-भावनासे विचलित होनेसे बढ़कर घातक बात और कोई न होगी। इस देशमें बड़ेसे- बड़े गोरेको जो न्याय सुलभ है वही सच्चा न्याय कालेको भी प्राप्त होना चाहिए। उसमें इस सिद्धान्तको सदा अपने सामने रखना चाहिए और अगर वावी काला आदमी है तो हमें बन्दीको छोड़ न देना चाहिए।

प्रत्येक सच्चे साम्राज्य प्रेमीको ब्रिटिश न्यायकी गौरव-रक्षा इतने श्रेष्ठ ढंगसे करनेके लिए न्यायाधीश वेसेल्सका हृदयसे कृतज्ञ होना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३१-३-१९०६