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न्यायका दुर्ग


नगर-भवनमें आम सभा हो, इसमें हमें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन, क्या इससे हमारे सहयोगीका अभिलषित लक्ष्य सिद्ध हो जायेगा? क्या जन-समुदायने कभी भी किसी विषयपर ठंडे दिलसे विचार किया है? आम सभा तो किसी ऐसे आन्दोलनको ही बल दे सकती है जो तथ्योंपर आधारित हो; परन्तु वह कभी छान-बीन करके सच्चे तथ्योंको प्राप्त करनेकी चेष्टा नहीं करती। अक्सर यह गाली-गलौज और मनोवेगोंको उभाड़नेवाली बातोंसे परिचालित होती है। अतएव, जब सार्वजनिक सभाओंका आयोजन किसी ऐसी परिस्थितिपर विचार करनेके लिए किया जाता है, जिसे पहले ही निश्चत रूपसे जान नहीं लिया गया है, तब वे खतरनाक साबित होती हैं। हम इस कथनको स्वीकार कर लेंगे कि प्रश्न "गोरे लोगोंके लिए आत्मरक्षा और सच्चे जीवन-मरणका है।" तो फिर, तथ्योंकी खोज और उनपर कारगर कार्रवाई करनी होगी। अभी जो एक बात बिलकुल स्पष्ट है, वह यह है कि भारतीय व्यापारी पूरी तरह परवाना-अधिकारी और स्थानिक निकायोंकी दयापर निर्भर हैं। दूसरा तथ्य भी सर्वथा स्पष्ट है; अर्थात् अनेक मामलोंमें परवाना अधिकारी और स्थानिक निकायोंने अत्यन्त मनमाने और अन्यायपूर्ण ढंगसे काम किया है। तीसरा तथ्य यह है कि श्री हैरी स्मिथ उत्तरोत्तर बढ़ती सतर्कतासे भारतीय आव्रजकोंके प्रवेशकी निगरानी कर रहे हैं; और कोई भी भारतीय, अपना पूर्व अधिवास सिद्ध किये बिना, न जल-मार्गसे और न थल-मार्गसे उपनिवेशमें प्रवेश कर सकता है। इससे अधिक और क्या चाहिए? अगर यह इन दो कानूनोंके अमलका सवाल है तो, निश्चय ही, किसी आम सभा बात बनने की नहीं है। इसका एकमात्र उपचार है कोई जाँच आयोग; और हम खुले दिलसे इसका स्वागत करेंगे। अगर नेटालकी यूरोपीय आबादी, दरअसल, यह महसूस करती है कि भारतीय व्यापारी फूल-फल रहे हैं, वे अनुचित स्पर्धा कर रहे हैं और सख्त कानून पर्याप्त सख्ती से लागू नहीं किये जा रहे हैं, तो कुछ निष्पक्ष व्यक्तियोंकी एक छोटी-सी समिति तथ्योंको शीघ्र ही स्पष्ट कर देगी। और अगर वह सिद्ध कर दे कि हमारे सहयोगी द्वारा आशंकित परिस्थिति जैसी कोई चीज मौजूद है, तो वह उपयुक्त अवसर होगा कि ऐसे आयोगके निष्कर्षोपर विचार-विमर्श करनेके लिए आम सभाका आयोजन किया जाये।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३१-३-१९०६
 

२६६. न्यायका दुर्ग

पाँचेफस्ट्रूमकी दौरा-अदालतके सामने अभी हालमें एक बहुत महत्वपूर्ण मुकदमेकी सुनवाई हुई है। पाँचेफस्ट्रममें दो यूरोपीयोंने एक भारतीय व्यापारीसे रुपया ऐंठनेकी कोशिश की। तरीका यह अपनाया गया था कि भारतीय उन दोनोंमें से एककी पत्नीके पास ले जाया गया और वहाँ उसपर बलात्कारकी चेष्टा करनेका इल्जाम लगाया गया। यह षड्यंत्र करीब-करीब सफल हो गया। जालसाजोंने भयत्रस्त भारतीयसे ३०० पौंड चेकसे वसूल कर लिए, परन्तु सौभाग्यसे भारतीयने तत्काल अपने वकीलसे कानूनी सहायता ली। वकीलने उसको चेककी अदायगी रोक देने और मामलेकी सूचना पुलिसको देनेकी सलाह दी। उसने इसपर तुरन्त अमल किया। दोनों यूरोपीय गिरफ्तार कर लिये गये और साथ ही वह स्त्री भी। परिणाम हुआ, न्यायमूर्ति वेसेल्सके सामने एक सनसनीखेज मामलेकी पेशी और भारतीयकी प्रतिष्ठाकी पुनःस्थापना। रकम ऐंठने का आरोप साबित हो गया और दोनों मुलजिमोंको तीन-तीन वर्षके कठोर कारावासकी