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प्रार्थनापत्र : लॉर्ड एलगिनको


१६. आपके प्रार्थीको उक्त स्थानपर व्यापार करनेसे रोकनेके लिए स्थानिक निकायने नेटालका १८९७ का कानून १८ जारी किया, जिसे विक्रेता-परवाना अधिनियम कहा जाता है।

१७. इसलिए आपके प्रार्थीको दोहरे प्रतिबन्धोंका सामना करना पड़ रहा है — अर्थात् ट्रान्सवाल कानूनका भी और नेटाल कानूनका भी। इनसे फाइहीडमें ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थिति उससे भी ज्यादा खराब हो गई है, जितनी ट्रान्सवाल तथा नेटालके दूसरे भागों में है।

१८. १८९७ के कानून १८ के अनुसार आपके प्रार्थीको अपने परवानेके लिए परवाना- अधिकारीको आवेदनपत्र देना पड़ा । वही अधिकारी टाउन क्लार्क भी है; इसलिए स्वभावतः वह स्थानिक निकायसे आदेश ग्रहण करता है।

१९. परवाना अधिकारीने परवाना नया करनेसे इनकार कर दिया।

२०. इसलिए, आपके प्रार्थीने कानूनके अनुसार स्थानिक निकायसे अपील की।

२१. स्थानिक निकायके ज्यादातर सदस्य हमारे प्रतियोगी व्यापारी तथा आपके प्रार्थीसे द्वेष माननेवाले व्यक्ति हैं। उसने परवाना अधिकारीके निर्णयको पक्का करार दे दिया है।

२२. परवाना अधिकारीने अपनी अस्वीकृतिके निम्नलिखित कारण बताये हैं:

१. कस्बेकी भूमिपर बने मकानोंके लिए परवाना देनेका अधिकार परवाना अधिकारीको नहीं है - और ऐसी भूमिपर बने मकानोंके लिए परवाने देनेका अधिकार तो और भी नहीं है जो स्थानीय निकाय द्वारा पहले कभी पट्टेपर नहीं दी गई।

२. मेरी अस्वीकृतिका दूसरा कारण यह है कि ऐसा करनेसे मुझे १४ मार्च १९०५ के 'गवर्नमेंट गजट' में प्रकाशित सरकारी विज्ञप्ति संख्या १९१ तथा उसके अनुसार बने और उत्तरी जिलोंमें जारी कानूनोंके एकदम विरुद्ध कार्य करना पड़ता । उनमें भारतीयोंको पृथक् बस्तियोंके अतिरिक्त अन्यत्र परवाने देनेकी स्पष्ट मनाही की गई है।

३. मैंने परवाना देनेसे इसलिए भी इनकार किया कि ऐसा करनेमें मैंने समस्त समाजके सर्वोत्तम हितों और उसकी अभिव्यक्त भावनाओंके अनुकूल कार्य किया है- भले इसमें प्रार्थीके वकील अपवाद रूप हों।

साथ नत्थी किये गये कागजातसे[१] यह बात अधिक पूर्ण रूपमें प्रकट होगी।

२३. परवाना अधिकारीने जो पहला कारण बताया है वह पूर्णतः भ्रामक है; क्योंकि आपके प्रार्थीको पृथक् बस्तीके अतिरिक्त और सर्वत्र व्यापार करनेका परवाना अस्वीकार किया गया है।

२४. दूसरा कारण भी, ट्रान्सवालके सर्वोच्च न्यायालयके उपर्युक्त निर्णयके अनुसार निकम्मा है।

२५. तीसरा कारण ही असली कारण है — अर्थात् यह कि आपका प्रार्थी एक ब्रिटिश भारतीय है।

२६. १८९७ के उक्त कानून १८ के अन्तर्गत उपनिवेशके सर्वोच्च न्यायालय में अपील भी नहीं हो सकती; और स्थानिक निकायका निर्णय ही अन्तिम समझा जाता है।

२७. आपके प्रार्थीने स्थानिक निकायसे उसके ऐसे निर्णयका कारण जानना चाहा, पर निकायने कोई कारण बताने से इनकार कर दिया — जैसा कि प्रार्थीके वकील और टाउन क्लार्कके बीच हुए पत्र-व्यवहारसे प्रकट होता है। पत्र-व्यवहारकी एक प्रति इसके साथ नत्थी है।[२]

२८. इसपर आपके प्रार्थीने तबतक व्यापारके लिए एक अस्थायी परवाना जारी करनेकी अर्जी दी, जबतक कि प्रार्थी राहतके लिए अन्य कार्रवाइयाँ नहीं कर लेता। स्थानिक निकायने यह भी अस्वीकार कर दिया।

 
  1. यहाँ नहीं दिये गये हैं।
  2. यहाँ नहीं दिये गये हैं।