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२६४. प्रार्थनापत्र : लॉर्ड एलगिनको

डर्बन

मार्च ३०, १९०६

सेवामें

परममाननीय अर्ल ऑफ एलगिन
महामहिम सम्राटके प्रधान उपनिवेश मन्त्री

लन्दन

नेटाल उपनिवेशके फ्राइहीड निवासी दादा उस्मानका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि,

१. आपका प्रार्थी एक ब्रिटिश भारतीय प्रजा है।

२. आपका प्रार्थी पिछले २४ वर्षोंसे दक्षिण आफ्रिकाका अधिवासी है।

३. आपके प्रार्थीने १८९६ में फ्राइहीडके उस भागमें सामान्य दुकानदारके रूपमें अपना व्यापार शुरू किया था, जो उस समय भारतीय बस्तीके नामसे प्रसिद्ध था।

४. आपके प्रार्थीने वहाँ मकान बनवाया, जिसके मूल्यका अनुमान ३०० पौंड है।

५. भूतपूर्व बोअर सरकारने उक्त स्थानसे आपके प्रार्थीको हटाकर एक नई वस्तीके लिए निश्चित स्थानमें भेजने की कई बार चेष्टा की, किन्तु ब्रिटिश सरकारके हस्तक्षेपके कारण आपके प्रार्थी के लिए उसी स्थानपर अपना व्यापार जारी रखना सम्भव हुआ।

६. आपके प्रार्थीने नियमित परवाना लेकर उसके अनुसार सदा फाइहीडमें व्यापार किया है।

७. आपके प्रार्थीके पास लगभग ३,००० पौंड कीमतका कपड़ा तथा किरानेका भण्डार था।

८. ऐसी स्थिति थी आपके प्रार्थीकी, जब फाइहीड नेटालमें सम्मिलित किया गया।

९. फ्राइहीडको नेटालमें मिलाने की शर्तोंमें व्यवस्था है कि १८८६ में संशोधित १८८५ का कानून ३, जो ट्रान्सवालके एशियाई-विरोधी कानूनके नामसे प्रसिद्ध है, बना रहेगा।

१०. ट्रान्सवालके सर्वोच्च न्यायालयने इस कानूनकी जो व्याख्या की है[१], उसके अनुसार तो व्यापारके सम्बन्ध में ब्रिटिश भारतीयोंके लिए कोई क्षेत्र सीमित नहीं है और वे अन्य ब्रिटिश प्रजाजनोंकी तरह ही व्यापार-सम्बन्धी परवाने लेनेके लिए स्वतन्त्र हैं।

११. परन्तु फ्राइहीड स्थानिक निकायने उक्त स्थानपर आपके प्रार्थीका परवाना नया करनेसे इनकार कर दिया। उसने आपके प्रार्थीको इस शर्तपर फाइहीडमें व्यापार करने देनेकी इच्छा प्रकट की कि प्रार्थी एक पृथक् बस्ती में निकाय द्वारा निश्चित स्थानमें जाकर व्यापार करे।

१२. उक्त स्थान फ्राइहीडसे बहुत दूर है और व्यापारके लिए बिलकुल उपयुक्त नहीं है।

१३. आपके प्रार्थीके लिए ऐसे स्थानपर व्यापार करना असम्भव है जो कस्बेके व्यापारिक भागसे दूर है।

१४. आपके प्रार्थीने अपने उक्त स्थानपर अच्छी साख पैदा कर ली है।

१५. आपके प्रार्थीने अपने परवानेको नया करानेकी कई कोशिशें कीं; परन्तु उसे नया करनेसे इनकार कर दिया गया।

 
  1. देखिए खण्ड ४, पृष्ठ १२६।