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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निकले। और अगर उनकी सुनवाई हुई, तो सम्भव है कि उसमें बहुत हद तक भारतीयोंका भी समावेश होगा।

वे जैसा कर रहे हैं हमें भी वैसा करनेकी बहुत आवश्यकता है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-३-१९०६
 

२६०. होडेलबर्गकी जमातको दो शब्द

हीडेलबर्गकी जमात के बीच जो अनबन चली आ रही है, उसके विषयमें हम कई पत्र छाप चुके हैं। दोनों पक्षोंको जो कहना था, सो हमने कहने दिया है। अब इस विषय में और भी चिट्ठी-पत्री छापते रहना, मानो केवल कलह् जारी रखना है। इसलिए इस सप्ताह के बाद हम इस प्रश्नकी चर्चा करनेवाले पत्र छापना बन्द कर देंगे।

हम जो पत्र छाप चुके हैं उनसे पता चलता है कि दोनों पक्षोंमें थोड़ा-बहुत दोष हो सकता है। हम उसका विवेचन नहीं करना चाहते। दोष किसीका भी हो, पर हम यह देख सकते हैं कि कलह एक न-कुछ बातपर है और चलता रहता है। इसका मुख्य कारण ज़िद है । हम दोनों पक्षोंसे विनती करते हैं कि मुखियोंको ऐसा प्रयत्न करना चाहिए जिससे कलहके कारण समाप्त हो जायें और लोग परस्पर मिलजुल कर रहने लगें। घरके झगड़ोंके अलावा इस देश में हमपर इतने अधिक संकट हैं कि हमें उन संकटोंमें घरके झगड़े दाखिल करके और वृद्धि नहीं करनी चाहिए। दोनों पक्ष आपसमें समझौता करके सबसे काम लें तो कलह शीघ्र समाप्त हो जायेगा। हम उम्मीद करते हैं कि दोनों पक्षोंके सेठिए आपस में मिलकर हीडेलबर्गकी जमात में पैठे हुए इस कलहको मिटायेंगे, और दोनों पक्षोंको फिरसे मिला देंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-३-१९०६
 

२६१. केपमें चेचक

केपका समाचार है कि वहाँ काले लोगों में चेचक फैल गई है। इस सम्बन्धमें केपके मुखियोंको जाँच करके तत्काल परिणाम देनेवाले उपाय करने चाहिए। चेचकके बीमारकी सार-सँभाल कुछ नियमोंका ध्यान रखनेसे सहज ही हो सकती है। दूसरोंको छूत न लगे, इसके लिए अलग कोठरीमें रखकर सावधानीके साथ बीमारकी शुश्रूषा करनेसे छूतका डर बहुत-कुछ दूर किया जा सकता है। ऐसी बीमारीको छिपानेसे कोई फायदा नहीं होता बल्कि आखिर जिस समाजमें यह बीमारी फैलती है उसे नुकसान सहना पड़ता है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-३-१९०६