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पत्र : दादाभाई नौरोजीको

करनी पड़ती है। अगर डॉक्टर स्मिथका नौकर उनके ही कामसे न जा रहा होता, और तब उसने गफलत की होती, तो डॉक्टर स्मिथको रकम न चुकानी पड़ती।

जो नौकर रखते हैं उन्हें इस मामलेसे नसीहत लेनी चाहिए। खास तौरपर मोटरके मामलेमें देखा यह गया है कि चालक अक्सर अपनी उद्धतता अथवा अप्रवीणताके कारण गलती करते हैं। इससे नुकसान मालिकको भोगना पड़ता है। यह हमेशा याद रखने योग्य है।

डॉ० अब्दुर्रहमान

केप टाउनके सुपरिचित डॉक्टर अब्दुर्रहमान आगामी मंगलवारको यहाँ आनेवाले हैं। वे यहाँ तथा प्रिटोरियामें काले लोगोंकी सभा में भाषण देंगे और तुरन्त ही केप टाउन लौट जायेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २४-३-१९०६
 

२५६. पत्र : दादाभाई नौरोजीको[१]
ब्रिटिश भारतीय संघ

२५ व २६ कोर्ट चेम्बर्स

रिसिक स्ट्रीट
जोहानिसबर्ग

मार्च १९, १९०६

सेवामें
माननीय श्री दादाभाई नौरोजी
२२ कैनिंगटन रोड
लन्दन
इंग्लैंड
[महोदय,]

मैं आपका ध्यान 'इंडियन ओपिनियन' के १० मार्चके अंकमें नेटाल सरकारके नाम प्रकाशित एक विरोधपत्रकी[२] ओर खींचना चाहता हूँ। यह विरोधपत्र प्रवासी-प्रतिबन्धक कानूनके अन्तर्गत दिये जा रहे प्रमाणपत्रों और पासोंपर वशके बाहर लगाये गये शुल्कके सम्बन्धमें नेटाल भारतीय कांग्रेसने नेटाल सरकारको भेजा है।

यह शुल्क सरासर अन्यायपूर्ण है और उसका लेशमात्र औचित्य नहीं है, यह तो कहनेकी आवश्यकता ही नहीं है।

दक्षिण आफ्रिका भारतीय समाजको दूसरा गम्भीर आघात ट्रान्सवालमें पहुँचाया गया है।[३] आप १७ मार्चके 'इंडियन ओपिनियन' के अंकमें १८८५ के कानून ३ के अन्तर्गत ट्रान्सवालके

 
  1. इस पत्रका मसविदा दादाभाई नौरोजीने सदैवकी तरह भारत-मंत्री और उपनिवेश मंत्रीको भेजा था।
  2. देखिए "पत्र: उपनिवेश सचिवको", पृष्ठ २२९-३०।
  3. देखिए "कानून समर्थित डाका", पृष्ठ २४०-१।