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२५१. अन्तर्राज्य वतनी महाविद्यालय

वर्तमान लवडेल संस्थाको केन्द्र-बिन्दु बनाकर एक अन्तर्राज्य वतनी कॉलेजके निर्माणके लिए 'इम्बो' के सम्पादक श्री टेंगो जबावुने कुछ मास पहले जो आन्दोलन चलाया था उससे काफी उत्साह पैदा हुआ है। श्री जबावु और आन्दोलनके संघटनमन्त्री श्री के° ए° हॉबर्ट हॉटन, दोनों दक्षिण आफ्रिकाका दौरा कर रहे हैं। उनके तीन उद्देश्य हैं — विभिन्न दक्षिण आफ्रिकी सरकारोंका सहानुभूतिपूर्ण सहयोग प्राप्त करना; विवेकपूर्ण व्याख्या और उदाहरण द्वारा इस विषयपर वतनियोंमें स्वस्थ जनमत उत्पन्न करना; और, इनमें सबसे महत्वपूर्ण है, निकट भविष्य में इस गम्भीर कार्यको आरम्भ करनेके लिए धन एकत्र करना। अमेरिकाकी टस्केजी संस्थामें श्री बुकर टी° वाशिंगटनने<ref>देखिए खण्ड ३, पृ४ ४६८-७१। जो उत्तम और शिक्षाप्रद कार्य किया है उसकी ओर इन स्तम्भों द्वारा हमे पहले भी ध्यान आकर्षित कर चुके हैं। यह प्रस्ताव है कि इस नये महा-विद्यालयको जो कार्य सौंपा जायेगा उसे अमेरिकी संस्थाके समान ही औद्योगिक प्रशिक्षणकी दिशामें विकसित किया जाये। इस सबसे अच्छा ही परिणाम निकल सकता है और इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं कि दक्षिण आफ्रिकी महान वतनी प्रजातियोंके जैसे जागृत होते हुए राष्ट्रोंमें एक ऐसा उत्साह व्याप्त हो रहा है जो धार्मिक जोशसे कुछ कम नहीं। उनके लिए यह कार्य निश्चय ही पुनीत और पुण्यमय है; क्योंकि इससे विचारोंमें प्रगतिके द्वार खुलते हैं और आध्यात्मिक विकासको बहुत बल मिलता है। इस कार्यमें दिलचस्पी लेनेवाली विभिन्न धार्मिक संस्थाओं और राज्योंसे मिलनेवाली सहायताके अलावा केवल वतनियोंसे ही ५०,००० पौंडकी भारी रकम एकत्र करनेका विचार है। आत्मत्यागके इस उदाहरणसे दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीयोंको बहुत कुछ सीखना है। अगर अपनी सम्पूर्ण आर्थिक अक्षमताओं और सामाजिक असुविधाओंके बावजूद दक्षिण आफ्रिकाके वतनी इस स्थानीय कार्यको पूर्ण कर सकते हैं तो क्या ब्रिटिश भारतीय समाजके लिए यह लाजिमी नहीं कि वह इससे हृदयमें शिक्षा ग्रहण करे और शैक्षणिक सुविधाओंको आगे बढ़ानेके लिए जिस शक्ति और उत्साहसे अबतक काम होता रहा है उससे कहीं अधिक शक्ति और उत्साहसे काम करे? शैक्षणिक मामलोंमें सुधार स्वयं हमें ही करना होगा और हम अपने पाठकोंपर जोर देंगे कि वे प्रश्नके इस पहलूपर गौर करें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १७-३-१९०६