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२४९. व्यक्ति-कर

लेडीस्मिथका एक संवाददाता हमारे गुजराती स्तम्भों में लिखता है :

फरवरी २८ के 'गवर्नमेंट गजट' में व्यक्तिकरके बारेमें एक सूचना छपी है। उसके अनुसार वतनियोंके सिवा बाकी लोगोंको, जो उस तिथि तक कर न चुकायेंगे, जुर्माना देना होगा। इससे भारतीयोंमें आतंक फैल गया है। लेडीस्मिथवासी भारतीयोंने तो कर चुका दिया है, परन्तु वे गरीब भारतीय जो अभी-अभी गिरमिटते मुक्त हुए हैं, और खेतों तथा दूर-दराज जगहोंमें रह रहे हैं, इसका आशय नहीं समझ सकते और व्यक्ति कर अदा नहीं कर पाये हैं। इन लोगोंको सूचित करना लाजिमी है। पुलिस अफसर (साजेंट-इन-चार्ज) व्यक्तिकर ले लेता है और उन्हें रसीद दे देता है। तब वह उनको मजिस्ट्रेटके सामने ले जाता है और वहाँ उनपर जुर्माने किये जाते हैं। अगर वे जुर्माना नहीं अदा करते तो उन्हें जेल जाना पड़ता है। एक घटना मेरी उपस्थितिमें ही हुई। मोतई नामक एक भारतीय लेडीस्मिवसे पाँच-सात मील दूर रहता था। एक मित्रने उसे सूचित किया कि उसे कर चुका देना चाहिए। इसलिए उसने अपने कानकी बालियाँ ढाई शिलिंग मासिक व्याजपर एक पौंडमें गिरवी रख दीं और कर अदा कर दिया। उसको रसीद दे दी गई और तब वह मजिस्ट्रेटके पास ले जाया गया। उसपर दस शिलिंग जुर्माना किया गया। अब वह रकम कहाँसे लाये? उसके पास एक पास था। वह उसको अदालतमें छोड़ गया है और जुर्मानेकी रकम लानेका वादा कर गया है . . . अबतक लगभग बारहसे लेकर पन्द्रह लोगोंपर जुर्माना किया जा चुका है।

हम इस ओर सरकारका ध्यान आकर्षित करते हैं। यदि हमारे संवाददाता द्वारा दी गई सूचना ठीक है, तो यह व्यक्तिकरकी वसुलीसे सम्बन्धित अधिकारियोंके लिए अत्यन्त वदनामीकी बात है। इन गरीब लोगोंको न केवल कर चुकानेके लिए बाध्य करना, बल्कि जब वे कर देने आयें तब उनपर जुर्माना ठोंक देना, हमें अन्यायकी पराकाष्ठा मालूम होती है। हमारी रायमें दण्डात्मक धारा उनपर लागू नहीं होती जो अपनी इच्छासे कर दे देते हैं; बल्कि उनपर लागू होती है जो उसकी अदायगीसे बचना चाहते हैं। दैनिक पत्रोंमें इस आशयके समाचार छपे हैं। कि भारतीय अत्यन्त शीघ्रतासे कर चुका रहे हैं। जैसा कि हमारे संवाददाताने लिखा है, दूर-दराज जगहोंमें रहनेवाले लोगोंसे यह आशा करना निर्दयता है कि वे विज्ञापित समयसे पूर्व अदायगीकी जगहों में पहुँचकर कर चुका देंगे। हमें इस सम्बन्धमें सन्देह नहीं है कि बहुतोंको अपनी इस जिम्मेदारीका पता भी नहीं है, और जैसा कि हमारे संवाददाताने लिखा है, यदि यह सत्य है कि उन्हें सूचित किया जाना लाजिमी है तो सरकारसे अधिकारियोंको यह आदेश देनेकी उम्मीद करना उचित ही होगा कि जो लोग कर दें उनसे वे रकम ले लें और उनको व्यक्ति-कर कानून भंग करनेके कथित अपराधमें गिरफ्तार करके उनपर जुर्माने न करायें। हमें सरकारकी दया-भावनामें काफी विश्वास है और हम अनुभव करते हैं कि वह इस अन्यायको बन्द कर देगी, जो कानूनके नामपर किया जा रहा है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १७-३-१९०६