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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

बीच एकता स्थापित हो जाये, तो ठीक हो। इस बैठकमें क्या हुआ, सो अभी मालूम नहीं हो सका है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनमें एकमत नहीं हो पाया, इसलिए वे बिना किसी फैसलेके उठ गये।

इस बीच यहाँ एक दूसरी बड़ी हलचल हो रही है। गोरे लोगोंका एक शिष्टमण्डल विलायत भेजने और सम्राट् एडवर्डको एक बहुत बड़ी अर्जी देनेका फैसला किया गया है। उसपर हजारों दस्तखत कराये जा रहे हैं। प्रार्थियोंकी माँगके अनुसार, जो भी विधान बने उसमें यह शर्त होनी चाहिए कि हर मतदाताको समान हक रहे और सदस्योंका चुनाव मतदाताओंकी संख्याके अनुसार हो।

इस अर्जीका हेतु यह है कि इससे अंग्रेज जनताका बल बढ़े। अंग्रेजोंकी तुलनामें संख्याकी दृष्टिसे बोअर लोग कम हैं। बोअर लोगोंकी माँग है कि सदस्य गाँवके हिसाब से बनने चाहिए। यदि ऐसा हो, तो बहुत-से गाँवों में बोअरोंकी आबादी अधिक होनेसे उनकी सत्ता बढ़ सकती है। इस तरह उन्होंने लड़ाईमें जो कुछ खोया है, वह उत्तरदायी व्यवस्थामें उन्हें वापस मिल जायेगा। यह कशमकश बड़ी तगड़ी है। मेहनत और लगनमें कोई किसीसे कम बैठनेवाला नहीं है। बोअरोंको उदार मन्त्रिमण्डलका बहुत जोर है। "साँड साँड लड़ें बिरवाई को चूरा होय" वाली कहावतके अनुसार इसमें बेचारे काले लोग कुचल न जायें तो अच्छा। मगर नगाड़ोंकी आवाज में तूतीकी आवाज कौन सुनेगा?

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन १७-३-१९०६
 

२४८. "कानून-समर्थित डाका"[१]

हम एक दूसरे स्तम्भमें एक ऐसे मुकदमेका विशेष विवरण[२] प्रकाशित कर रहे हैं जिसमें ट्रान्सवालके सर्वोच्च न्यायालयके सामने पिछले सोमवारको बहस हुई थी। हमारे संवाददाताने उसे "कानून समर्थित डाका" कहा है और इस टिप्पणीके लिए यह शीर्षक ग्रहण करनेमें कोई हिचकिचाहट नहीं है। १८८५ के कानून ३ के सम्बन्धमें ब्रिटिश भारतीय संघ द्वारा अनेक शिकायतें प्रस्तुत की गई हैं। किन्तु हमारे संवाददाताने जिस मुकदमेका विवरण भेजा है, उसके समान निर्दय या कठोर एवं अन्यायपूर्ण कोई अन्य मामला हमारे ध्यानमें नहीं आता। जिस कानूनके अन्तर्गत ऐसा स्पष्ट अन्याय किया जा सकता है, नरम भाषामें कहें तो भी वह कानून नितान्त अमानवीय है। जब श्री ल्यूनाईने अपने जोरदार भाषणमें जजोंसे कानूनका दयापूर्ण अर्थ लगाने और यदि सम्भव हो तो, अभागे अभियुक्तोंको न्याय प्रदान करनेकी प्रार्थना की तब स्पष्टतः उनके खयालमें कानूनकी निर्दयताकी बात थी। स्वर्गीय श्री अबूबकर आमद उन भारतीयों में से थे जो दक्षिण आफ्रिका में सर्वप्रथम आकर बसे थे। वे एक अग्रगण्य भारतीय व्यापारी थे, और नेटाल तथा दक्षिण आफ्रिकाके दूसरे हिस्सोंमें उनकी बहुत बड़ी भू-सम्पत्ति थी। अपने समय में यूरोपीयों और भारतीयों दोनोंमें उनका आदर था — और वह आदर बहुत

 
  1. यह १३-४-१९०६ के इंडिया में भी प्रकाशित हुआ था।
  2. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।