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२४०. लज्जाजनक

पिछली २७ फरवरीके 'नेटाल गवर्नमेंट गज़ट' में प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम के अन्तर्गत एक विज्ञप्ति प्रकाशित हुई है। कानूनसे प्रभावित लोगोंको इसके सम्बन्धमें कई कागज पत्र लेने पड़ते हैं। विज्ञप्तिके द्वारा इन कागज पत्रोंको लेनेकी कई तरहकी फीसें लगा दी गई हैं। हम नाममात्रकी फीसकी कोई परवाह नहीं करते, यद्यपि ऐसी तुच्छ-सी फीस भी वसूल करनेकी वैधतापर हमें सन्देह है। परन्तु उपर्युक्त विज्ञप्ति तो नेटालके खाली खजानेको भरनेकी लज्जा-जनक चेष्टा मात्र है, और कुछ नहीं है। अधिवास (डोमीसाइल) प्रमाणपत्र, अभ्यागत (विज़िटिंग) पास या नौकारोहण (एम्बार्केशन) पास — हरएकका एक पौंड देना होगा। शिक्षा-सम्बन्धी परीक्षा पास करनेकी योग्यताका प्रमाणपत्र, पत्नीकी छूटका प्रमाणपत्र और निकासीका पास ( इसका अर्थ जो भी हो) — इनमें से हरएककी फीस पाँच शिलिंग होगी। इस प्रकार यद्यपि कानूनकी रूसे कोई भारतीय नेटालमें प्रवेश करने या इस उपनिवेशमें रहनेका अधिकारी भले ही हो, किन्तु वह अबसे उसका मूल्य दिये बिना ऐसा कर नहीं सकता।

१८९७ में इस तरहका कर लगानेकी कोशिश की गई थी, परन्तु स्वर्गीय परममाननीय एच° एस्कम्बने[१] इसके विरुद्ध नेटाल भारतीय कांग्रेसका विरोध उचित समझकर उस करको तुरन्त वापस ले लिया था।

इस विज्ञप्तिके बनानेवालोंको यह नहीं सूझा प्रतीत होता कि उनकी भारतीयोंसे इतनी भारी फीसें ऐंठनेकी कोशिशसे उपनिवेशका घाटा कम होना आवश्यक नहीं है। एक ट्रान्सवाल-वासी भारतीय भारतको लौटना चाहता है। इसके लिए उसे केप, डर्बन या डेलागोआ-बे से गुजरना ही पड़ेगा। सबसे ज्यादा लोग डर्बनके रास्तेसे जाते हैं। भारतीय मुसाफिरोंका याता-यात अच्छा खासा होता है। नेटाल सरकारको इस बातकी सावधानी बरतनी चाहिए कि वह कहीं भारतीयोंसे एक पौंड ज्यादा ऐंठनेके प्रयत्नमें उस मुर्गीको न मार डाले जो नेटालसे गुजरनेवाले भारतीय यात्रियोंके यातायातके रूपमें सोनेका अंडा देती है। उसकी स्वार्थ वृत्तिसे हमारा इतना अनुरोध काफी है।

इन्साफकी दृष्टिसे तो मामला सोलहों आने भारतीयोंके पक्षमें है। प्रवासी अधिनियम सभी लोगोंपर एक-सा लागू माना जाता है, फिर चाहे वे किसी देशके हों। परन्तु वस्तुतः वह्, एकमात्र नहीं तो मुख्यतः, भारतीयोंके विरुद्ध लागू किया जाता है। इसलिए विज्ञप्तिमें जिन फीसोंको लगानेकी तजवीज है वे भारतीय समाजपर विशेष करके रूपमें हैं। हम इस आर्थिक परेशानीमें सरकारके साथ सहानुभूति प्रकट करते हैं। किन्तु उसने राज्यका खजाना भरनेका जो तरीका अपनाया है, उसका समर्थन नहीं कर सकते।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-३-१९०६
 
  1. सर हैरी एस्कम्ब (१८३८-९९), नेटालके सर्वोच्च न्यायालयके एक प्रमुख वकील, और बादमें महान्यायवादी। १८९७ में नेटालके प्रधानमंत्री थे।