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२३८. "एशियाइयोंकी बाढ़"

दक्षिण आफ्रिका सहयोगी व्यापार-मण्डलोंकी कांग्रेस पिछले हफ्ते डर्बनमें हुई थी। उसने फिर भारतीयोंके बारेमें एक प्रस्ताव पास किया है। प्रिटोरियाके श्री ई° एफ° बोर्कने यह प्रस्ताव किया था :

दक्षिण आफ्रिकी व्यापार-मण्डलोंकी यह कांग्रेस सम्पूर्ण दक्षिण आफ्रिकाके व्यापारपर एशियाइयोंकी निरन्तर बाढ़के प्रभावको, जो अधिकाधिक हानिकर होता जा रहा है, भयके साथ देखती है और विश्वास प्रकट करना चाहती है कि दक्षिण आफ्रिकाकी गोरी आबादी के हितोंके रक्षार्थ इस सम्बन्ध में यथासम्भव न्यूनतम समयके भीतर विविध सरकारोंकी संगठित कार्रवाई अत्यन्त आवश्यक है।

श्री जी° मिचलने प्रस्ताव किया कि "निरन्तर" शब्द निकाल दिया जाये और प्रस्ताव इस संशोधनके साथ पास हो गया। सहयोगी व्यापार-मंडलोंकी कांग्रेस जैसी महत्वपूर्ण संस्था द्वारा पास किये हुए इस प्रकारके प्रस्तावका वजन होना ही चाहिए, और आशंका है कि तथ्योंकी दृष्टिसे बिलकुल निराधार होते हुए भी प्रस्तावका उपयोग दक्षिण आफ्रिकाके व्यापार-मण्डलोंकी ओरसे प्रकट की गई प्रामाणिक सम्मतिके रूपमें किया जायेगा।

अगर प्रस्तावपर शांतिके साथ विचार किया जाये तो जान पड़ेगा कि एशियाइयोंकी बाढ़से सम्पूर्ण दक्षिण आफ्रिकाके व्यापारपर हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ सकता, क्योंकि भारतीय प्रवासी चाहे कितने ही गरीब हों, आखिर उपभोक्ता तो होंगे ही। किन्तु हमारे खयालसे प्रस्ताव निर्माता यह कहना चाहते होंगे कि भारतीयोंकी बाढ़ के कारण भारतीय व्यापारियोंकी संख्या बढ़ी है और उसका ऐसा प्रभाव पड़ा है। यद्यपि भारतीयोंकी बाढ़, और भारतीय व्यापार, दोनों सवालोंपर इन स्तम्भों में कई बार पूरी तरह विचार किया जा चुका है, फिर भी हम यह दिखानेके लिए इनपर पुन: विचार करना चाहते हैं कि वास्तविक स्थितिके सम्बन्धमें वक्ताओंकी जानकारी कितनी कम थी। जहाँतक केप कालोनी और नेटालका सम्बन्ध है, और जैसा प्रवास-कार्यालयके रोजाना कागजातसे मालूम पड़ता है, भारतीय प्रवासियोंपर बड़ी प्रभावपूर्ण रोक है और प्रतिबन्धोंको लागू करने का तरीका दिन-ब-दिन अधिकाधिक कष्टप्रद बनाया जा रहा है। प्रोफेसर परमानन्दके पत्रसे, जिसे हम दूसरे स्तम्भमें छाप रहे हैं, पता चलेगा कि प्रवासी अधिकारी व्यक्तिका कोई लिहाज नहीं करते। विद्वान प्रोफेसरको, जिनका नाम और यश उनसे पहले ही यहाँ पहुँच चुका था, एलिज़ाबेथ बन्दरगाहमें, धरतीपर पग रखनेकी इजाजत देनेसे पहले शिक्षा- सम्बन्धी कसौटीसे गुजरनेके लिए मजबूर किया गया। क्या इससे भी ज्यादा सख्ती सम्भव है?

ऑरेंज रिवर कालोनी तो इस नाप-जोखमें कहीं आती ही नहीं, क्योंकि किसीने कभी यह नहीं कहा कि वहाँ कोई उल्लेखनीय भारतीय आबादी या भारतीय व्यापार है। फिर भी हम देखते हैं कि प्रस्ताव सारे दक्षिण आफ्रिकापर लागू किया गया है।

ट्रान्सवालके सम्बन्धमें तो लॉर्ड सेल्बोर्न तथा दूसरे सरकारी अधिकारियोंने कई बार स्पष्ट शब्दों में कहा है कि किसी भी गैर-शरणार्थी ब्रिटिश भारतीयको ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेकी अनुमति नहीं दी जा रही है। हमारा "अनुमतिपत्रका काठ"[१] स्तम्भ यह प्रमाणित करेगा।

 
  1. देखिए "अनुमतिपत्रका काठ", पृष्ठ २१३