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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


हमारी समिति अत्यन्त आदरपूर्वक यह विचार व्यक्त करती है कि जो शुल्क लागू करने हैं, वे बहुत ज्यादा हैं।

हमारी समिति सरकारको इस तथ्यका स्मरण दिलाती है कि परम माननीय स्वर्गीय हैरी एस्कम्बके जीवन कालमें अभ्यागत पासोंपर एक पौंड शुल्क लगानेका प्रयत्न किया गया था। इसपर उस शुल्कको लागू करनेके विरुद्ध आपत्ति करते हुए एक आदरपूर्ण आवेदनपत्र भेजा गया और उन महानुभावने शुल्क लगानेके सम्बन्धमें निकाली गई सूचना तुरन्त वापस ले ली।

उस समय अधिवास प्रमाणपत्र एक पौंडी शुल्कसे मुक्त था।

इसके अतिरिक्त हमारी समिति आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर भी आकर्षित करती है। कि जो ब्रिटिश भारतीय समुद्र-तटसे दूरस्थ उपनिवेशोंमें रहते हैं उनको नेटालमें से गुजरनेके विशिष्ट अधिकारके लिए १ पौंड शुल्क दिये बिना कमसे कम इस उपनिवेशमें से गुजरनेका हक है।

दरअसल, स्वार्थकी दृष्टिसे भी, इस तथ्यको ध्यानमें रखते हुए, कि ऐसे भारतीयोंसे नेटालकी सरकारी रेलवेको कुछ निश्चित आमदनी होती है, सरकारको कोई निषेधक शुल्क न लगाना चाहिए।

सन् १९०६ के कानून ३ में १ पौंडका शुल्क उचित समझा गया है। मेरी समिति निवेदन करती है कि अभ्यागत पास, नौकारोहण पास या अधिवास प्रमाणपत्रका १ पौंड शुल्क कभी उचित नहीं माना जा सकता। और, यदि किसी अधिवासी ब्रिटिश भारतीयकी पत्नीको उपनिवेशमें रहने या प्रवेश करनेका अधिकार है, और यदि शिक्षा सम्बन्धी परीक्षा में उत्तीर्ण भारतीय भी उपनिवेशमें अधिकारसे प्रवेश कर सकता है तो, मेरी समितिकी विनीत सम्मतिमें, यह कठोर ही नहीं, बल्कि अपमानजनक भी प्रतीत होता है कि अधिवासी भारतीयकी पत्नीको या शिक्षित भारतीयको इसलिए ५ शिलिंग देना पड़े — जो आखिरकार कर ही है। — कि उसे कानून के अर्थके अन्तर्गत निषिद्ध प्रवासी न माना जाये।

हमारी समिति निकासी-पास (ट्रान्जिट पास) का अर्थ नहीं समझती।

हमारी समितिका विश्वास है कि सरकार सूचनाको वापस लेनेकी और अबतक लागू शुल्कको चालू रहने देनेकी कृपा करेगी।

हमारी समिति आशा करती है कि चूंकि यह मामला आवश्यक है, आप इसपर जल्दी ध्यान देंगे।

आपके आज्ञाकारी सेवक,

ओ° एच° ए° जौहरी
एम° सी° आंगलिया

संयुक्त अवैतनिक मन्त्री, ने° भा° कां°

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-३-१९०६