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२३४. पत्र : ए° जे° बीनको

जोहानिसबर्ग

मार्च ७, १९०६

प्रिय श्री बीन,

श्री मैनरिंगके बारेमें आपका पत्र मिला। मुझे अफसोस है कि वे अपने साथ हुई बातचीतकी वजहसे अपनी स्थिति अनिश्चित समझ रहे हैं। जब मैं वहाँ गया तब मेरा इरादा उनसे बातें कर लेनेका था; किन्तु समय नहीं मिला और मैं बातें नहीं कर सका। मैंने सभी लोगोंसे जो कुछ कहा था, वह मैं सोचता रहा हूँ। परिस्थिति ऐसी थी कि मैं उस समय पिल्ले या और किसीके बारेमें बात कर रहा था। निःसन्देह मैंने यह कहा था कि कोई सिखाता है या और कुछ करता है, इस कारण उसे ऐसा नहीं मानना चाहिए कि जैसे ही वह काम उसने पूरा किया कि उसे जाना पड़ेगा; प्रेसके लोगोंमें से हरएक, जबतक छापाखाना सचमुच निठल्ला नहीं हो जाता, अपनेको पूरी तरहसे सुरक्षित समझ सकता है। मैं यह नहीं जानता कि तब श्री मैनरिंग वेतनके आधारपर वहाँ थे या योजनाके अंग थे। जब श्री मैनरिंगने योजनाको छोड़ दिया और फिर बादमें लौटे तब उन्हें कोई आश्वासन नहीं दिया गया था। मैं सोचता हूँ, जब वे लिये गये, मैंने छगनलालसे कहा — वह पत्र[१] उसके पास होगा — कि अब अगर श्री मैनरिंगको कामपर लें तो मासिक आधारपर। मेरा कहना ठीक न हो; किन्तु ऐसा मुझे ध्यान है। किसी भी हालत में मेरा इरादा लोगोंको ऐसा आश्वासन देनेका हरगिज नहीं था कि जो योजकोंमें नहीं है, वे सारी परिस्थितियों में अपनेको सुरक्षित मान सकते हैं। मैं इतना ही कहना चाहता था कि किसीके स्थानपर दूसरेको कर देनेका अर्थ उसे निकाल बाहर करना बिलकुल नहीं है। उस रायपर मैं अब भी कायम हूँ। मैं नहीं जानता, श्री मैनरिंग क्या करनेकी बात सोच रहे हैं। मेरी हद तक, मैं पूरी तरह रजामंद हूँ कि वे ३ पौंड मासिकपर बने रहें, कमसे कम इस वर्षके अन्त तक। मुझे मालूम है, आप चाहते हैं कि उन्हें इससे अधिक मिले, और अगर योजक सहमत हों तो मुझे तनिक भी आपत्ति नहीं है। और यदि योजक इस बातको मंजूर करें तो आप मान सकते हैं कि मैं इस पत्रसे बँधा हुआ हूँ और श्री मैनरिंग निश्चित रहें कि मेरी व्यक्तिगत राय चाहे जिस तरह बदल जाये, वे अपने आपको कमसे कम इस वर्षके अन्त तक बहाल समझें। मैं श्री मैनरिंगको इस विषयमें अलगसे लिख रहा हूँ।[२]

आपका शुभचिन्तक,

मो° क° गांधी

श्री ए° जे° बीन

मारफत 'इंडियन ओपिनियन'

फीनिक्स

मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस° एन° ४३१८) से।

 
  1. यह पत्र उपलब्ध नहीं है।
  2. यह उपलब्ध नहीं है।