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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

लिए वे पैसा देते । उनको नाम भरके लिए दूसरे या पहले दर्जेकी सुविधाएँ देना और वस्तुतः उनसे वंचित रखना हास्यास्पद होगा । हम रेलवे अधिकारियोंका ध्यान अपने संवाददाता द्वारा की गई शिकायतकी ओर आकर्षित करते हैं और हमें इसमें कोई सन्देह नहीं है कि वे, ऐसी शिकायतें भविष्यमें न हों, इसके लिए जरूरी कदम उठायेंगे ।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-३-१९०६
 

२२८. मिडिलबर्ग से गुजरनेवाले भारतीयोंको सूचना

सुनने में आया है कि मिडिलवर्ग स्टेशनसे गुजरनेवाले भारतीयोंका परवाना हमेशा देखा जाता है। साधारणतया ट्रान्सवालकी सरहदपर बसे हुए स्टेशनोंके सिवा और कहीं ऐसा नहीं होता; सिर्फ मिडिलबर्ग में ही इस तरहकी कार्यवाही होती पाई जाती है। इस विषय में मिडिलबर्गके हमारे पाठक अधिक जानकारी भेजेंगे, तो हम उसे छायेंगे। इस बीच मिडिलबर्ग जानेवाले मुसाफिरोंको ऊपर दी हुई हकीकत ध्यानमें रखनी चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-३-१९०६
 

'२२९. जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

मार्च ३, १९०६

ट्रामका मुकदमा

इस पत्रके छपनेसे पहले बहुत करके ट्रामके परीक्षात्मक मुकदमेका[१] फैसला हो चुका होगा। कई कठिनाइयोंके बाद धर्मके वकीलने श्री कुवाडियाका हलफनामा मंजूर करके जिस ट्रामवालेने उन्हें बैठनेसे रोका था उसके नाम सम्मन जारी किया है। यह मामला ७ मार्चको चलनेवाला है। इस बीच अखबारोंमें ट्रामपर विवाद चल रहा है। एक गोरेने श्री दारूवालाको एक उद्धत पत्र लिखकर यह जताया है कि गोरे ट्राममें काले लोगोंको कभी अपने साथ नहीं बैठने देंगे। दूसरे कुछ लोगोंने लिखा है कि अगर काले लोगोंको ट्राममें बैठने दिया गया, तो यह माना जायेगा कि उन्हें गोरोंकी बराबरीका दर्जा दिया गया है। इसलिए उन्हें कभी बैठने नहीं देना चाहिए। इस तरह दो-चार मुफ्तखोर अखबारोंमें लिखते रहते हैं। इस बीच खास काले लोगोंके लिए चलनेवाली ट्रामगाड़ी में गोरे बिना किसी दुरावके बैठते हैं। ऐसे शहरकी बलिहारी!

चीनी मजदूर

इस समय सब लोगोंके मनमें यह सवाल चल रहा है कि चीनी लोगोंको निकाल देंगे या रखेंगे। विलायतके तारसे पता चलता है कि जिसे पसन्द न हो, उस चीनीको सरकारने

 
  1. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ २१५-६।