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२२४. राजवंशके सदस्योंका आगमन

हम महाविभव ड्यूक ऑफ कनॉट, उनकी पत्नी और राजकुमारी पैट्रीशियाका हार्दिक स्वागत करते हैं। यह बात ध्यान देने योग्य है कि राज-कुटुम्बके तीन सदस्य विदेशों में हैं — दो तो महामहिम सम्राट्के उपनिवेशोंमें गये हैं और तीसरे एक ऐसे देश में जो इंग्लैंडका मित्र है। इंग्लैंडके भावी राजा और रानी भारतमें भ्रमण कर रहे हैं और अपने दयालु तथा मधुर स्वभावसे भारतीयोंके प्रेम-भाजन बन रहे हैं। राजकुमार ऑर्थर जापान और ब्रिटेनके बीच मित्रताका सम्बन्ध दृढ़ कर रहे हैं। और हमारे राजकीय मेहमान, अपने सामान्य चातुर्यसे दक्षिण आफ्रिकियोंके प्रिय बनते जा रहे हैं। राज-कुटुम्बके तीन सदस्योंको लगभग एक ही समय इंग्लैंडसे बाहर जानेकी आज्ञा देकर महामहिम सम्राट् और साम्राज्ञीने यह प्रकट कर दिया है कि जिस साम्राज्यपर वे इतनी योग्यतासे शासन करते हैं उसके कुशल क्षेमका उनको कितना ध्यान है । यह साम्राज्यके उज्ज्वल भविष्यका एक सुखद लक्षण है कि स्वर्गीया महारानी विक्टोरियाके उत्कृष्ट गुण उनके बच्चों में आ गये हैं। हम सर्वशक्तिमान प्रभुसे, जो हम सबका पिता है, प्रार्थना करते हैं कि वह उनको दीर्घायु करे, ताकि वे साम्राज्यकी परम्पराओंका पालन करते रहें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-३-१९०६
 

२२५. भारतीय और उत्तरदायी शासन[१]

ट्रान्सवालको पूर्णतम और अत्यन्त व्यापक रूपका उत्तरदायी शासन दिया जायेगा; इसलिए ट्रान्सवालका खानों और खेतों में चीनी मजदूरोंको कामको अनुमति देने या न देनेका निर्णय करने और उद्योगपर सामान्य तौरपर नियन्त्रण रखनेका अधिकार विवादसे परे है; लेकिन यह निहायत जरूरी है कि वर्तमान अध्यादेश उसको विरासतमें न मिले। नये विधानमें ऐसी निर्योग्यता रखना अनुपयुक्त और असम्मानजनक होगा जिससे यह ध्वनि निकलती जान पड़े कि हम मानते हैं, ट्रान्सवाल हमारी अधिकार-कल्पनाके विपरीत कार्य करेगा। किन्तु हर एक स्वयंशासित उपनिवेशके संविधानमें रक्षित सत्ताके अनुसार गवर्नरको यह हिदायत करनेका प्रस्ताव किया गया है कि बाहरसे लाये गये श्रमिकों के बारेमें जो भी कानून बनाये जायें, वे साम्राज्यीय संसदमें विचार तथा स्वीकृतिके लिए सुरक्षित रखे जाने चाहिए। वर्तमान अध्यादेशसे मिलते-जुलते कानूनका निषेध किया जा सकता है, यद्यपि हम कल्पना नहीं करते कि ऐसी विशेष स्थिति उत्पन्न होगी।

ये बातें श्री एस्क्विथने चीनी विवादके अवसरपर कहीं। उनसे भारतीय प्रश्नसे मिलते-जुलते एक प्रश्नके बारेमें इंग्लैंडकी सरकारकी स्थिति संक्षेपमें स्पष्ट हो जाती है। चीनी श्रमिक अध्यादेश साम्राज्यकी परम्पराओंके प्रतिकूल है; और ऐसे ही भारतीय-विरोधी कानून भी है। फर्क केवल यह है कि भारतीय-विरोधी कानून अधिक आपत्तिजनक है और उसको रद करना अपेक्षाकृत

 
  1. यह 'इंडिया' के अप्रैल ६, १९०६ के अंकमें भी प्रकाशित हुआ था।