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भाषण: अब्दुल कादिर की विदाईपर

हैं। और तमाम संकटोंमें हमने आपको सदा एक तत्पर नेता पाया है। आपने कांग्रेसकी बैठकोंकी अध्यक्षता सदैव कुशलता और दूरदर्शितासे की है। और जब जब धनकी माँग हुई समाजके नेताकी हैसियतसे आपने सदा अपना योग दिया है।

अब आप अपने सु-अर्जित विश्रामका उपभोग करनेके लिए भारत जा रहे हैं। इसलिए हम कामना करते हैं कि हम सबकी जन्म-भूमिमें आपका और आपके आत्मीयोंका अल्पवास सुखमय तथा सफल हो। हम आशा करते हैं कि आप शीघ्र ही हमारे बीच लौटकर फिरसे अपने समाजके कल्याणके कार्य उठा लेंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-३-१९०६
 

२२३. भाषण : अब्दुल कादिरकी विदाईपर

श्री अब्दुल कादिरको मानपत्र भेंट करनेके बाद गांधीजीने जो भाषण दिया उसका विवरण नीचे दिया जा रहा है :

डर्बन

[फरवरी २८, १९०६]

श्री मो° क° गांधीने सभामें पहले अंग्रेजीमें और फिर गुजराती में भाषण दिया। उन्होंने कहा कि श्री अब्दुल कादिर एक ऐसे पुरुष हैं, जिन्होंने नेटालके भारतीय समाजकी बहुत सेवा की है। उन्होंने राजनीतिक मामलोंमें जो हिस्सा लिया है उसका ज्ञान कदाचित् आज शामकी इस सभा में उपस्थित अनेक सज्जनोंकी अपेक्षा मुझे अधिक है। उनसे पूर्व कांग्रेसकी अध्यक्षताका भार जिन्हें उठाना पड़ा वे योग्य और समर्थ व्यक्ति थे, जिन्होंने समाजके लिए उत्तम काम किया था; और उनका अनुसरण करना कोई सरल काम नहीं था। परन्तु मुझे यह कहते हुए बिलकुल संकोच नहीं कि यह उत्तरदायित्व योग्य व्यक्तिके कन्धोंपर पड़ा। कांग्रेसकी आर्थिक स्थिति दृढ़ करनेके लिए श्री अब्दुल कादिरने बहुत परिश्रम किया, और यह अधिकतर उनकी कोशिशोंका ही फल है कि हमें इतनी सफलता प्राप्त हुई है। श्री गांधीको इस सिलसिले में एक घटना याद आई। जब श्री अब्दुल कादिर और कांग्रेसके अन्य सदस्य चन्दा इकट्ठा कर रहे थे, वे टोंगाट गये। वहाँ उनके एक देशवासीने चन्दा देनेमें आनाकानी की। परन्तु श्री अब्दुल कादिर हार माननेवाले नहीं थे। इसलिए सुबह तक वे और उनके साथी वहीं डटे रहे। रातको भूमिपर बिछे हुए टाटपर सोये। सबेरे जब "शत्रु" ने "हार" मान ली, उन्हें अपने धैर्यका फल मिल गया[१]

ऐसा है हमारे अतिथिका चरित्र। जब कभी कोई काम आ पड़ा, श्री अब्दुल कादिर अपना समय और ध्यान देनेके लिए तत्पर मिले। श्री गांधीने कामना की कि श्री अब्दुल कादिर और उनके परिवारकी भारत यात्रा आनन्दमयी हो और वे कुशलतापूर्वक लौटें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-३-१९०६
 
  1. देखिए, खण्ड ३, पृष्ठ ९०६।