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सम्राटका भाषण


तुम्हारा भेजा हुआ पत्र-व्यवहारका दस्ता मिला है; उसे देखकर शनिवारको आगे रवाना कर दूंगा ।

तुम्हारा शुभचिन्तक,
मो° क° गांधी

श्री छगनलाल खुशालचन्द गांधी
मारफत 'इंडियन ओपिनियन'
फीनिक्स

टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस° एन° ४३१३) से।

 

२१५. सम्राट्का भाषण

सम्बन्धित व्यक्तियोंके कथनानुसार जीवित मानवोंकी स्मृतिमें, सम्राट्के भाषणकी प्रतीक्षा इतनी चिन्ता अथवा आशाके साथ शायद कभी नहीं की गई, जितनी इस सप्ताह साम्राज्यीय संसदके उद्घाटनके अवसरपर सम्राट् एडवर्ड द्वारा दिये गये भाषणकी। और इसमें सन्देह नहीं कि वह एक दूरगामी महत्त्वकी घोषणा है। जिनको उदार दलकी नीतिसे भय है, उनकी चिन्ता और भी गहरी हो जायेगी, और जिनको उदार दलसे बहुत बड़ी आशाएँ थीं उनकी आशाएँ, जहाँतक वादोंका सम्बन्ध है, पूर्ण होंगी।

भारतके पल्ले निराशा पड़ेगी। भारतके बारेमें तो उसमें फक्त इतना ही जिक्र है कि सैनिक प्रशासन विषयक कागजात प्रकाशित कर दिये जायेंगे। बंग-भंगका बिलकुल उल्लेख नहीं है; और यदि आये हुए समुद्री तारमें सब बातें संक्षेपमें पूरी दी गई हैं तो अकालका भी कोई जिक्र नहीं है। परन्तु यह विश्वास करनेका पूरा कारण है कि जब एक आमूल सुधारवादी प्रधानमन्त्रीके[१] हाथमें बागडोर है और जॉन मॉर्ले जैसे योग्य राजनीतिज्ञ भारत-मन्त्री हैं तब भारत पूर्ण रूपसे उपेक्षित नहीं रहेगा।

परन्तु हमारे लिए तात्कालिक महत्त्वका विषय यह है कि सनदोंकी वापसीका और ट्रान्सवाल तथा ऑरेंज रिवर उपनिवेश — दोनोंको तुरन्त स्वायत्तशासन देनेका, जिसका प्रस्ताव किया गया है, दक्षिण आफ्रिकाके इन हिस्सोंके निवासी ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिपर क्या प्रभाव पड़ेगा। यह मान लेना तो उचित ही होगा कि जो संविधान उदारदलीय मन्त्रियों द्वारा बनाया जायेगा, वह यथासम्भव गोरे अधिवासियोंके अनुकूल होगा। यह अन्यथा हो ही नहीं सकता। उनको अपने आन्तरिक मामलोंका यथासम्भव पूर्ण नियन्त्रण दे दिया जायेगा। दुर्बल पक्षोंके अधिकारोंकी पूर्ण सुरक्षाकी नीति भी इन्हीं उदार सिद्धान्तोंके आधारपर बनाई जानी चाहिए। इसलिए, हमारे विचारसे, भारतीयोंके प्रतिनिधित्वके सवालपर सबसे पहले ध्यान दिया जाना चाहिए। एक पूर्ण प्रातिनिधिक सरकारमें भारतीयोंको सर्वथा प्रतिनिधित्व न देना उनको उन विधायकोंकी दयापूर्ण देखरेखमें छोड़ देना होगा, जिनके हृदयोंमें उनके लिए कोई दया नहीं होगी; क्योंकि उन्हें अपने आश्रितोंके कल्याणमें कोई दिलचस्पी न होगी। स्वर्गीय सर जॉन रॉबिन्सनके इस सुन्दर तर्कके[२] बावजूद, कि ऐसी प्रणालीमें प्रत्येक सदस्य भारतीयोंका सदस्य

 
  1. सर हेनरी केम्बेल-बैनरमेन, इंग्लैंडके प्रधान मन्त्री १९०५-८।
  2. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ३८७।