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सम्पूर्ण गांधी वाङमय
प्रायः नीचेके नियमोंका पालन पर्याप्त होगा :

(१) जो अपने विरोधमें हों उनको छापनेकी परिपाटी रखना -- जैसे हबीब मोटनका, हाजी हबीबका ।

(२) लम्बे व्याख्यानोंसे डरना ।

(३) लिखनेवालेपर ध्यान रखना। उसकी सामग्री लेनी ही चाहिए, ऐसा लगे और वह लम्बी हो, तो संक्षेप करना ।

(४) स्थानीय समाचारोंके पत्र लेना ।

नाईके टंटेसे[१] सम्बन्धित पत्रोंको लेनेके लिए मैंने इसलिए लिखा कि वह बात डंडीके लोगोंके लिए उपयोगी है। उसे एकदम बन्द करना ठीक नहीं ।

मोहनदास के आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रतिकी फोटो- नकल (एस०एन० ४३११) से

२१२. पत्र : छगनलाल गांधीको

जोहानिसबर्ग
फरवरी २१, १९०६

चि० छगनलाल,

तुम्हारा पत्र मिला । रेलवे नोट नहीं मिला । केप टाउनके विज्ञापन जायें, तो कोई हर्ज नहीं। मैं उन्हें लिखता हूँ। श्री नाजरका बाकी सामान पड़ा है। उसकी बाबत मोतीलालसे मिलकर फैसला करना । भट्ट और आदमजी सेठको भी लिखता हूँ । 'ओपिनियन' के लिए पढ़नेका काम बुधवारको फीनिक्समें रखना अधिक ठीक मानता हूँ । उससे तुम बुधवार तक की सामग्री पढ़ सकोगे । लिखने योग्य जो बात पढ़ने में आये उसे एक कागजपर टाँक लिया जाये और लिखने और समाचारपत्रोंको पढ़नेका काम बुधवारसे ही शुरू किया जाये। ऐसा विभाजन करनेसे, मेरा खयाल है, ठीक होगा। सोमवार अथवा मंगलवार और शनिवार गाँवके लिए रखना ठीक जान पड़ता है । बुध, गुरुके सिवा दूसरे दिनोंमें मेरे लिखे हुए के सिवा कुछ दूसरा, विशेषकर 'ओपिनियन' के लिए, न पढ़नेका नियम रखनेसे तुम बहुत समय बचा सकोगे, ऐसा लगता है । अब हिसाब-किताबकी स्थिति कैसी है ?

मोहनदास के आशीर्वाद

[ पुनश्च ]

तुम्हारे जूते और कपड़े बहुत करके आज अब्दुल गनी सेठके हाथ भेजूँगा। हेमचन्द तुम्हारे अथवा आनन्दलालके साथ रहे,तो बहुत अच्छा ।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रतिकी फोटो नकल (एस०एन० ४३१२ ) से ।


  1. एक यूरोपीय ग्राहकके आ जानेसे डंडीके एक भारतीय नाईने एक भारतीय व्यापारीकी हजामत अधूरी छोड़ दी। इसपर वहांके भारतीय समाजने उस नाईका बहिष्कार करनेका निश्चय किया ।