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पत्र: छगनलाल गांधीको

मैं अब भी इस रायपर निश्चित हूँ कि फुटकर काम छोड़ दिया, उसीमें अच्छा है । और तुम प्रेस में हो, यह ठीक है । अब चूँकि फुटकर कामकी चिन्ता नहीं रही इसलिए दफ्तर में आदमी न हो, उसकी भी चिन्ता नहीं रही । वतनियोंके बदले जहाँतक बने, भारतीय हों, तो ठीक मानता हूँ। फिर भी जैसा ठीक हो, वैसा ही करना । उसमें मेरी अक्सर निर्भर न रहना । श्री आइजकको समझाऊँगा ।

श्री ब्रायनके बारेमें जैसा तुम कहते हो वैसा ही मेरे मनमें भी है । यदि वे आयें, तो फिलहाल तो कम्पोजिंगका काम ही करें। तुम आनन्दलालसे भी दिक्कतोंकी पूरी बात करना और उससे हमदर्दी प्राप्त करना। उसकी सलाह भी लेना । उससे वह खुश भी रहेगा। मन खुला रखना ।

कालाभाईको अभीतक कमरा न मिला हो, तो तुरन्त ही प्रबन्ध करना।
विज्ञापन हमारे हाथसे निकल गया, उसके बारेमें जाँच-पड़ताल करूँगा ।

तुम्हारे जूते इत्यादिकी खोज कल (सोमवारको) करूँगा । बाहरके पत्रोंको पढ़कर व्यवस्था करनेका काम हेमचन्दको ही सौंपना । वीरासामीसे कहना कि मुझे हुक्म अभीतक नहीं मिला । जैसे ही मिला, मैं तुरन्त भेजूँगा ।

अब मुझे लिखनेको नहीं बचता । तुम वेस्टके साथ विशेष रूपसे मिलना । पहले तुम दोनोंको एक-जी हो जाना है; क्योंकि तुम दोनों ही योजनाको ज्यादा समझते हो । आनन्दलालको, जैसे बने, अपने साथ मिलाना। सैमको समझाना और बीनपर धीरे-धीरे सिंचन करना । वे मुझे चाहते हैं। योजना नहीं समझते। भले आदमी हैं, इसलिए छोड़ते नहीं हैं। पैसेकी तरफ ज्यादा ध्यान है, क्योंकि उनमें सच्ची सादगी नहीं है। फिर भी पैसेके लिए मरते हों, सो नहीं। वे आगे चलकर अच्छा करेंगे। हमेशा हर हफ्ते कमसे कम एक पत्र नियमित लिखते रहना, जिसमें तुम्हारे मनकी सब बातें हों ।

मोहनदास

[ पुनश्च ]
मेरा इस महीने में आना सम्भव नहीं होगा ।
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रतिकी फोटो नकल (एस०एन० ४७८३) से ।

'२११. पत्र : छगनलाल गांधीको

जोहानिसबर्ग
फरवरी १९, १९०६

चि० छगनलाल,

चर्चा पत्र वापस भेज रहा हूँ। सभीके ऊपर टीपें लिख दी हैं। उन्हें देखना । वली मुहम्मद हालीका उन्हींसे सम्बन्धित पत्र पोरबन्दर भेज देना और उन्हें लिखना कि ऐसा पत्र 'ओपिनियन में नहीं छापा जाता; फिर भी तुमने उसे पोरबन्दरके निदेशक (डायरेक्टर) को भेज दिया है । सारे पत्र मेरे पास देखनेके लिए भेजना जरूरी नहीं है। उनमें से जिन पत्रोंमें शंका हो, केवल वही मुझे भेजे जायें ।