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टान्सवालके भारतीय और अनुमतिपत्र

हीरक जयन्तीके अवसरपर उपनिवेशोंके प्रधान मन्त्रियोंके सम्मेलनमें[१] श्री चेम्बरलेनने जिस नीतिकी रूपरेखा बताई थी, वही मेरे संघके दावेका आधार है । परम माननीय महानुभावने कहा था

हम आपसे यह भी कहते हैं कि आप अपने मानसमें उस साम्राज्यकी, जो किसी प्रजाति या रंगके पक्ष या विरोधमें कोई भेद नहीं करता, परम्पराओंका ध्यान रखें। और सम्राज्ञीकी सम्पूर्ण भारतीय प्रजाओंको, या सम्पूर्ण एशियाइयोंको हो, उनके रंग या जातिके कारण, बहिष्कृत करना उन लोगोंके लिए एक ऐसा अपमानजनक कार्य होगा कि सम्राज्ञीके लिए उसपर स्वीकृति देना अत्यन्त व्यथाजनक हो जायेगा । . . . नहीं कि कोई आदमी हमसे भिन्न रंगका होनेके कारण ही आवश्यक रूपसे अवांछनीय आव्रजक है, बल्कि वह तो इसलिए अवांछनीय है कि वह गन्दा है या दुराचारी है, या कंगाल है, या उसमें कोई ऐसी आपत्तिजनक बात है जिसकी किसी संसदीय अधिनियमके अनुसार व्याख्या की जा सकती है और जिसके द्वारा उन सब लोगोंके सम्बन्धमें, जिन्हें आप वस्तुतः अलग रखना चाहते हैं, पृथक्करणकी व्यवस्था की जा सकती है।

आपका, आदि ,
अब्दुल गनी
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २४-२-१९०६

२०७. ट्रान्सवालके भारतीय और अनुमतिपत्र

निश्चय ही ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयोंकी दशा बड़ी ही अनिश्चित और दुःखपूर्ण है । हम दूसरे स्तम्भमें एक पत्र[२] प्रकाशित करते हैं जो ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षकी ओरसे ट्रान्सवालके उपनिवेश-सचिवको भेजा गया है। इसे पढ़कर बहुत दुःख होता है। भारतीयोंके अनुमतिपत्र सम्बन्धी नियम समय-समयपर बदले जाते रहे हैं और इससे उनको बड़ी असुविधाएँ हुई । लेकिन नये परिवर्तन बिलकुल आकस्मिक और रहस्यमय हैं । उपर्युक्त पत्रमें जिन नियमोंका हवाला दिया गया है वे, श्री अब्दुल गनीके कथनानुसार, भारतीय समाजपर किसी पूर्व सूचनाके बिना ही थोप दिये गये हैं और, अगर श्री अब्दुल गनीको प्राप्त जानकारी सही है। तो, ये सभी भारतीयोंपर लागू होंगे। इसका नतीजा यह होगा कि जो लोग ऐसे किन्हीं नियमोंकी जानकारीके बिना दक्षिण आफ्रिकामें आ गये हैं उनपर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ेगा । उनको शायद न नेटालमें कोई संरक्षण मिलेगा और न केपमें ही । वे ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेके निश्चित इरादे से आये होंगे और यदि ये नियम लागू किये गये और गत कालसे प्रभावकारी समझे गये तो उनसे सम्बन्धित लोगोंको बीमारी, मुसीबत, खर्च और परेशानीका सामना करना पड़ेगा। एक


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  1. . १८९७ में, देखिए खण्ड २, पृष्ठ ३९१ ।
  2. देखिए "पत्र : उपनिवेश सचिवको", पृष्ठ १९२-३ ।