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२०३. पत्र : छगनलाल गांधीको

जोहानिसबर्ग
फरवरी १३, १९०६


चि॰ छगनलाल,

मैंने तुम्हें कुछ दिन हुए कुमारी नायफ़लीसका नाम ग्राहकोंमें दर्ज करनेके लिए भेजा था। अगर अभीतक दर्ज न किया हो तो कर लेना । उनका पोस्ट ऑफिस बॉक्स ५८८९, जोहानिसबर्ग है। जनवरी १ से, सारे पिछले अंक भी उन्हें मिलने चाहिए।

मानजी एन० गेलानीने मुझे लिखा है कि उन्हें इस सालके मिले हैं। उन्हें हालमें पत्र नियमित रूपसे मिलता रहा है। और तीन भेजकर मुझे सूचित करना कि अंक भेज दिये हैं। प्रिटोरिया है। दूसरे और तीसरे अंक नहीं इसलिए तुम उन्हें अंक दो उनका पता बॉक्स ११०,

लन्दनके श्री रिचका पता बदलकर ४१ स्प्रिंगफील्ड रोड, सेंट जॉन्स वुड, लन्दन कर दिया जाये ।

श्री नाज़रके सामानकी बिक्रीका पैसा किसने अदा नहीं किया है, इसकी सूचना दो ।[१]

मैं आगेसे ऐसे परिवर्तनोंकी इत्तिला तुम्हें दूँ या उनके बारेमें हेमचन्दको लिखा करूँ ? मैं तुम्हें बहुत से ऐसे यान्त्रिक कामकी जिम्मेदारीसे बरी करना चाहता हूँ, किन्तु ऐसा सावधानीके साथ करना चाहता हूँ। अगर अन्तमें ये हिदायतें हेमचन्दके पास जानेवाली हैं तो सीधे उसके पास भेजनेसे कुछ बचत होगी । तुम्हारा आजका मुख्य काम गुजराती सम्पादनकी देख-भाल और जितने जल्दी बने हिसाबके खातेको बाकायदा करके रोकड़ बाकी निकालना और हर इमारतकी लागत जानना है । इमारतोंकी लागत जानकर आजतककी खतौनीको बाकायदा करनेके कामकी प्रगतिकी सूचना देना ।

'इंडियन ओपिनियन' का यह अंक मैंने कल तुम्हें सुधार कर भेजा है। मैं चाहता हूँ कि इन सब सुधारोंको सावधानीसे देखो और भविष्यमें उन्हें टालो । हमें चाहिए कि गुजराती- विभागको एकदम अद्वितीय बनायें और अगर इसके लिए हिसाबको छोड़कर केवल इसपर ही अपनी शक्ति तुम्हें लगानी पड़े तो सब कुछ छोड़कर इसीपर जुटना चाहिए। गुजरातीके केवल सात पृष्ठ हैं। ऐसा क्यों ? अब गोकुलदास कितनी गुजराती कंपोजिंग कर पाता है ? लगकर काम करता है ? उससे कहो, मुझे लिखे ।

श्री मदनजीतको २ पौंड १० शिलिंग देनेके तुम्हारे सुझावके बारेमें मेरी समझमें उन्हें उतना तो देना ही चाहिए और अगर वे हमसे सम्पर्क बनाये रखें तो ज्यादा भी दे सकते हैं। यदि वे ऐसा न करें तो कुछ भी देना असम्भव होगा । वे दूर हिन्दुस्तानमें काम कर रहे हैं, यह तो मैं खूब समझ सकता हूँ, लेकिन उनके लेpख 'ओपिनियन' में आने चाहिए। मैंने उनसे साफ कहा था कि उनसे पत्रको मदद पहुँचानेकी आशा रखी जायेगी। अगर वे ऐसा

  1. देखिए "मनसुखलाल हीरालाल नाजर", पृष्ठ १८७-९० ।