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पत्र: उपनिवेश सचिवको

स्वयं तब्दीलियोंके बारेमें, संघकी ओरसे निवेदन है कि उनका मंशा समाजको गहरी क्षति पहुँचाना ही है। यह समझ पाना कठिन है कि नाबालिग की उम्र और भी कम क्यों कर दी गई है। मरा संघ आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करता है कि ब्रिटिश साम्राज्यके और किसी भी हिस्सेमें, जहाँ कहीं माता-पिताओंको प्रवेशका अधिकार दिया गया है, १६ वर्षसे कम उम्र वाले बच्चोंका प्रवेश वर्जित नहीं है।

भारतीय समाजके लिए यह बात बहुत बड़ा महत्त्व रखती है कि अधिवासी भारतीयोंको अपने बच्चे साथ लानेमें किसी प्रकारकी बाधा या कठिनाई न हो।

उदाहरणार्थ, यह बात समझमें नहीं आती कि तेरह या पन्द्रह वर्षके बालकको अपने माता-पिताके पास आकर रहने और उनकी संरक्षतामें शिक्षा प्राप्त करनेसे क्यों रोका जाये। मेरा संघ आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर भी दिलाता है कि यह नियम ट्रान्सवालकी गैर-एशियाई जातियोंपर लागू नहीं होता।

जहाँतक दूसरे परिवर्तनकी बात है, अबतक अनाथ बच्चोंको अपने अभिभावकों के साथ आनेकी अनुमति थी। नये कानूनके अनुसार ऐसे बच्चोंको भी ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेसे रोका जायेगा। मेरे संघके लिए इस बातकी ओर ध्यान दिलाना जरूरी नहीं कि ऐसा नियम केवल मुसीबतें ही ढा सकता है।

तीसरे रद्दोबदल के बारेमें निवेदन है कि यदि आवासी मजिस्ट्रेटोंको जाँच-पड़तालका काम करना है तो उससे लगभग अनन्त विलम्ब होगा । ऐसे शरणार्थी भी हैं जिनकी अर्जियाँ पिछले नौ महीने से पड़ी हुई हैं, और यदि इस प्रकारके सभी प्रार्थनापत्र भिन्न-भिन्न जिलोंमें आवासी मजिस्ट्रेटोंको सौंपे जायेंगे, तो बहुत ज्यादा देर लग जायेगी। और फिर अगर प्रत्येक नगरका काम पृथक्-पृथक् उठाया जायेगा तो गवाहियाँ ली जानेकी विधिमें कोई एकरूपता न रह जायेगी ।

मेरा संघ आगे निवेदन करता है कि जब गवाह लोग प्रिटोरियाके बाहरके निवासी हैं तब अगर सभी जगहोंके गवाहोंके बयान लेने और उनसे पूरी जिरह करनेके लिए एक ही अधिकारी नियुक्त किया जाये तो मामलोंका निपटारा बहुत कुछ शीघ्रतासे होगा और कार्य- विधिमें एकरूपता सुलभ होगी।

इसके अतिरिक्त मेरा संघ आपको यह बतलाना चाहता है कि यह देखते हुए कि लगभग ७५ फी सदी शरणार्थी जोहानिसबर्ग या उनके आसपास के जिलोंमें आकर बसेंगे, न्यायकी खातिर यह आवश्यक है कि जोहानिसबर्ग में अनुमतिपत्र चाहनेवालोंकी जरूरतें रफा करनेके लिए किसी- न-किसी अधिकारीको समय-समयपर वहाँ जाते रहना चाहिए। मेरे संघकी विनम्र सम्मतिमें, जहाँतक जोहानिसबर्गके शरणार्थियोंका सम्बन्ध है, केन्द्रीय कार्यालय भले ही प्रिटोरियामें रहे, लेकिन अनुमतिपत्र देने और अँगूठेका निशान लेनेका यान्त्रिक कार्य जोहानिसबर्ग में किया जाये।

इस प्रश्नके सम्बन्धमें भी मालूम नहीं हो पाया है कि भारतीय स्त्रियोंके पास अलगसे अनुमतिपत्र रहें या नहीं।

मेरा संघ निवेदन करता है कि इस आवेदनपत्रमें कही हुई बातें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं, और वह विश्वास करता है कि उनपर समुचित ध्यान दिया जायेगा । सविनय निवेदन है कि उत्तर शीघ्र भेजा जाये।

आपका आज्ञाकारी सेवक,
अब्दुल गनी
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १७-२-१९०६