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१९६. सर डेविड इंटर

हमें यह लिखने में प्रसन्नता होती है कि सर डेविड हंटरने नेटालमें ही अपना अधिवास जारी रखनेका इरादा किया है और यह रजामंदी भी जाहिर की है कि दौरेसे लौटनेपर साथी नागरिक कहेंगे तो वे अपनी मर्जी ताकपर रखकर भी संसदमें प्रवेश करनेका विचार करेंगे। लोग उनसे अपना प्रतिनिधित्व करनेका अनुरोध करेंगे, यह निश्चित है; क्योंकि सभी मानते हैं कि वे संसदीय सेवाके लिए विशेष रूपसे उपयुक्त हैं। यद्यपि उनके निर्वाचनमें नेटालके भारतीय अधिवासी मत न दे सकेंगे, फिर भी वे श्री इंटरके समर्थनमें अपनी आवाज उठायेंगे ही। भारतीय सर डेविडके बहुत ऋणी हैं, क्योंकि वे देख चुके हैं कि सर डेविड नेटाल गवर्नमेंट रेलवेके जनरल मैनेजरकी हैसियतसे उनके साथ सदा शिष्ट व्यवहार ही न करते थे बल्कि उनका खयाल भी रखते थे। मुख्यतः उन्हींकी न्यायभावनाके फलस्वरूप भारतीयोंको रेलवे में सामान्य सुविधाएँ प्राप्त हुई हैं, अन्यथा जैसी उपनिवेशके अनेक लोगोंकी इच्छा थी, उनको सिर्फ तीसरे दर्जे के डिब्बोंमें ही सफर करनेको मजबूर होना पड़ता। अगर कुछ रेलवे अधिकारियोंका बर्ताव वैसा नहीं है जैसा होना चाहिए, तो इसमें सर डेविडका कोई दोष नहीं है। उन्होंने भारतीयोंकी शिक्षामें भी सक्रिय और व्यावहारिक दिलचस्पी ली है। सर डेविड एक भले अंग्रेज हैं और इस उपनिवेशने उनका सम्मान करके अपना ही सम्मान किया है। हमारी कामना है कि सर डेविडकी जल और थल-यात्रा सुखमय हो और वे शीघ्र वापस लौटें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-२-१९०६
 

१९७. हमारे तमिल और हिन्दी स्तम्भ

हमें यह घोषणा करते हुए खेद होता है कि हम फिलहाल अपने पत्रके तमिल और हिन्दी स्तम्भ बन्द करनेके लिए विवश हो रहे हैं। चूंकि आवश्यक सम्पादकों और कम्पोजीटरोंकी स्थायी सेवाएँ प्राप्त करना मुश्किल था, इसलिए हमें इन स्तम्भोंको जारी रखनेके लिए बड़ी-बड़ी कठिनाइयोंसे संघर्ष करना पड़ा है। हम इस बातको दुःखके साथ अनुभव करते रहे हैं कि कुछ समयसे हमारे तमिल और हिन्दी स्तम्भोंका स्तर वैसा नहीं रहा है जैसा हम चाहते हैं। इसलिए हम तबतक अनिच्छापूर्वक यह मार्ग ग्रहण करनेके लिए मजबूर हो गये हैं, जबतक हमारे कार्यकर्ता-मण्डलके कुछ सदस्य, जो अभी यह काम सीख रहे हैं, तैयार नहीं हो जाते और दोनों महान भाषाओंके प्रति न्याय करनेके योग्य नहीं बन जाते।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-२-१९०६