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१९२. ऑरेंज रिवर कालोनीमें भारतीय

लॉर्ड सेल्बोर्नने ब्रिटिश भारतीय संघके आवेदनपत्रका', विलम्ब किये बिना, शिष्टता- पूर्ण उत्तर दिया है। इस आवेदनपत्रमें रंगदार लोग' शब्दोंकी परिभाषाके प्रति, जो ऑरेंज रिवर उपनिवेशके सरकारी 'गजट' में चन्द अध्यादेशोंके मसविदोंमें अभी हालही प्रकाशित हुई है, विरोध प्रकट किया गया है। हमारा खयाल यह है कि लॉर्ड सेल्बोर्नने संघके आवेदन- पत्रको गलत समझ लिया है। आवेदनपत्रमें यह नहीं कहा गया है कि "जिन अध्यादेशोंका इसमें जिक्र है उनमें से कोई भी अध्यादेश ब्रिटिश भारतीयोंपर लागू नहीं होता है।" उसमें तो यह कहा गया है कि “व्यवहारतः वे लागू न होंगे। ये दो वक्तव्य बिलकुल भिन्न हैं। फिर, परमश्रेष्ठने इस आधारपर, कि यह पुरानी सरकारकी विरासत है, 'रंगदार लोग' की परि- भाषाका औचित्य स्थापित किया है। परन्तु ब्रिटिश भारतीय इस परिभाषापर आपत्ति उसी कारण करते हैं। उनकी स्थिति इस प्रकार है। अध्यादेश व्यवहारतः उनपर लागू न होगा। बोअर सरकारने भारतीयोंको काफिर लोगोंका समकक्ष बतलाकर उनका अपमान किया था। अब उस अनावश्यक अपमानको जारी रखनेका कोई अवसर नहीं रहा। यह तर्क अकाट्य मालूम होता है। दुःखकी बात है कि परमश्रेष्ठ दूसरोंका चित्त न दुखानेकी इच्छा रखते हुए भी संघकी बहुत मुनासिब प्रार्थनाको स्वीकार न कर सके।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-१-१९०६


१९३. व्यक्ति-करकी अदायगी

व्यक्ति-करका आजतक जैसा क्षीण स्वागत हुआ है, उसे देखते हुए यह नहीं जान पड़ता कि लोग उसको कुछ उत्साहके साथ चुका रहे हैं; और आशा भी ऐसी ही थी। गड़- बड़ी तो अगले महीनेके अन्तमें शुरू होगी। अधिकारियोंको कर देने में समर्थ और असमर्थ लोगोंमें भेद करना आसान नहीं होगा। लेकिन हर हालतमें एक बात तो साफ है : सरकार बालूसे भी तेल निकालनेके लिए कृतसंकल्प प्रतीत होती है। कुछ समय पहले, एक भार- तीयने उपनिवेश सचिवसे पूछा था कि जो लोग आवश्यक पौंड' की प्राप्तिके लिए अपनी अल्प फसलोंपर निर्भर करते हैं, क्या सरकार उनको करकी अदायगीके लिए कुछ और समय देगी। उसको इसका उत्तर यह दिया गया कि सरकार ऐसा करनेके लिए तैयार नहीं है। अलबत्ता, वे लोग चाहें तो अपनी खड़ी फसलोंको गिरवी रखकर कर्ज ले सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति यही खयाल करेगा कि एक सभ्य देशमें जो व्यक्ति "रोज कमाता और रोज खाता" है और जिसके पास फसल बोनेके बाद कुछ नहीं बचता, उससे कर अदा करनेकी उम्मीद नहीं की जायेगी। किन्तु ऐसी दीनावस्था अधिकारियोंको अपेक्षाकृत समृद्धिके रूपमें दिखाई पड़ती है। जिस राज्यको ऐसे नीचे स्तरपर उतर आना पड़ता है उसमें, स्पष्टतः, कोई बड़ी खराबी है। अधिकारी

१. देखिए "पत्र: उच्चायुक्तके सचिवको", पृष्ठ १७१ ।