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पर्यवेक्षण

केपम सरकार प्रवासी-अधिनियमकी प्रतिबन्धक धाराओंकी गलत व्याख्या करके भारतीय लोगोंको अधिकाधिक जकड़ती जा रही है। “अधिवासी" शब्दकी व्याख्या इस प्रकार की गई है कि पुराने बसे हुए भारतीय व्यापारी तक उस गिनतीमें न आने पायें। प्रसन्नताकी बात इतनी ही है कि सर्वोच्च न्यायालयने रक्षा कर ली है, और अब इन व्यक्तियोंके लिए उप- निवेशमें फिर प्रवेश करना या वहाँ बने रहना सम्भव हो गया है।

ट्रान्सवालमें, जहाँ कि मुख्य संघर्ष चल रहा है, स्थिति वैसी ही अनिश्चित है जैसी कि गत वर्ष थी। भारतीयोंका जो शिष्टमण्डल लॉर्ड सेल्बोर्नसे मिला था उसे वे कोई निश्चित उत्तर नहीं दे सके हैं। हाँ, उन्होंने शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अमलसे उत्पन्न शिकायतोंको दूर करनेका वचन दिया है।

जहाँतक ऑरेंज रिवर कालोनीका सम्बन्ध है, कुछ महीने पूर्व लॉर्ड सेल्बोर्नने ब्रिटिश भारतीय संघके प्रार्थनापत्रका जो उत्तर दिया था उससे प्रकट होता है कि इस उपनिवेशके द्वार भारतीयोंके लिए वे चाहे कोई भी क्यों न हों -अब भी नहीं खोले जायेंगे।

परन्तु भारतीय जनताके सामाजिक जीवनमें उन्नतिके लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं। लोगोंमें परस्पर अधिक मिलकर काम करने और भारतीय युवकोंको अधिक अच्छी शिक्षा देनेकी उत्सुकता है। श्री बर्नार्ड गैब्रियल प्रथम भारतीय हैं जिन्हें उपनिवेशमें जन्म लेनेपर भी ऊँची शिक्षा मिली है और जो इंग्लैंडसे बैरिस्टर बनकर आये हैं। समाजको अधिकार है कि वह उनसे अच्छे कामकी आशा रखे।

प्रोफेसर परमानन्दका आगमन और यहाँ हुआ उनका स्वागत इस बातके सूचक है कि भारतीय समाज चाहता है कि शिक्षित और सुसंस्कृत भारतीय उसके बीच ज्यादा आयें। आशा है कि समाजकी यह इच्छा निकट भविष्यमें ही कार्यान्वित हो जायेगी और समाजकी शिक्षा- सम्बन्धी आवश्यकताएँ स्वयं ही पूरी करनेकी दिशामें केन्द्रित प्रयत्न किये जाने लगेंगे।

यह पर्यवेक्षण निराशापूर्ण तो बहुत है, परन्तु इसमें आशाके चिह्नोंका अभाव नहीं है। अनिवार्य पृथक्करणके सिद्धान्तकी स्थापना करके भारतीय समाजको नीचा दिखानेके प्रयत्न, बार- बार किये जानेपर भी अबतक असफल रहे हैं। समाचारपत्र भारतीय शिकायतोंको पहलेसे अधिक मुस्तैदीसे प्रकाशित करने लगे हैं। भारतीयोंसे स्वयंसैनिकका काम लिया जानेका प्रश्न पहले उठाया तो हमने था, परन्तु अन्य समाचारपत्रोंने भी उसका अच्छा स्वागत किया।

नेटाल जेल-आयोगके सामने गिरमिटिया भारतीयोंकी दशाके विषयमें जो बातें प्रकट की गई थीं उनका भी नेटाली पत्रों द्वारा कुछ प्रचार हुआ है; और यद्यपि स्वयं ये घटनाएँ अस- लियतको बहुत कम प्रकट करती हैं तथापि इतना तो निश्चित रूपसे बतला ही देती हैं कि समाजको उसी मार्गपर चलना होगा जो उसने संघर्षके आरम्भ होनेपर अपने लिए निर्धारित कर लिया था अर्थात् संघर्षको औचित्यके साथ -- जैसा कि लॉर्ड सेल्बोर्नने भी माना है धैर्यके साथ और फिर भी दृढ़तासे जारी रखना।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-१२-१९०५

१.देखिए पाँचेपस्टमके भारतीयोंका वक्तव्य ", पृष्ठ १०१-३ ।

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