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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जीवन किस प्रकार सुधर सकता है। इस दृष्टिसे उन्होंने छोटी-छोटी कहानियाँ भी लिखी हैं। उनमें से एक अच्छी मानी जानेवाली कहानीका अनुवाद हम नीचे दे रहे हैं। उसका नाम वही है, जो हमने इस लेखके शीर्षकमें दिया है। इस कहानीके सम्बन्धमें हम अपने पाठकोंकी सम्मति चाहते हैं। यदि यह पाठकोंको सरस लगी और इससे फायदा मालूम हुआ तो हम इसी तरहकी और कहानियाँ भी देंगे। कहा जाता है कि इस कहानीकी मुख्य घटनाएँ सच्ची हैं।

[इसके बाद मूल अंग्रेजी कहानीका गुजराती अनुवाद दिया गया है।]

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-१२-१९५०


१८३० पर्यवेक्षण

हम प्रतिवर्ष इस समय दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय मामलोंकी स्थितिका पर्यवेक्षण किया करते हैं। यह पत्र निकाला ही इसलिए गया है, और इस स्थितिको सुधारना ही इसका उद्देश्य है।

हम चाहते तो यह थे कि अपने पाठकोंके सामने उत्साहजनक तलपट पेश कर सकते, परन्तु परिस्थितियाँ जैसी हैं उनमें ऐसा नहीं हो सकता। भारतीयोंके भाग्यमें ही मेहनत करना, दुःख सहना और बाट जोहते रहना बदा है, और हम यह नहीं कह सकते कि गत वर्ष वे अपने कुछ बोझ उतार फेंकने में सफल हो गये। नेटाल, ट्रान्सवाल, केप या ऑरेंज रिवर कालोनी, चाहे जिसे देखें, हमें ऐसी किसी बातकी याद नहीं आ सकती जिसकी गिनती सफलताओंमें की जा सके। हमें जो लेखा पेश करना है, वह नये घाटेको रोकनेका लेखा है। भारतीय समाजकी शक्ति नई दस्तन्दाजीको रोकनेमें ही लगी है।

नेटालमें, मानो भारतीयोंके लिए मानव-जनित कष्ट ही पर्याप्त नहीं थे, स्वयं प्रकृति भी उनके लिए क्रूर सिद्ध हुई है। भारतीयोंमें ही सबसे अधिक लोग भयंकर बाढ़के शिकार हुए हैं। इस विपत्तिमें जिन लोगोंकी जानें गई हैं उनकी कुल संख्याका पता तो शायद कभी नहीं लगेगा। परन्तु इससे यह प्रकट हो गया कि भारतीय क्या कर सकते हैं। भारतीय समाजके नेताओंने ही प्रायः सारा सहायता-कार्य हाथमें लिया और कुशलतापूर्वक सम्पन्न किया था।

नागरिकताके मामलोंमें राजनीतिक स्वतन्त्रता तो नेटालमें भारतीयोंको है ही नहीं- विक्रेता-परवाना अधिनियम पूर्ववत् कष्टका सबसे बड़ा कारण बना हुआ है। हुंडामल' और दादा उस्मानके दो मामले इसके प्रमुख उदाहरण हैं। उनसे भली भाँति स्पष्ट हो जाता है कि नेटालमें प्रत्येक भारतीय व्यापारीकी स्थिति कितनी अनिश्चित है।

नगरपालिका कानून संग्राहक विधेयक (म्यूनिसिपल लॉज कन्सॉलिडेशन बिल) भारतीयोंको नगरपालिका मताधिकारसे वंचित कर देता है। व्यक्ति-कर कानून लागू तो सबपर होता है, परन्तु उसका सबसे अधिक विपरीत प्रभाव भारतीयोंपर ही पड़ता है। प्रवासी-प्रतिबन्धक अधि- नियमका प्रयोग बहुत कठोरतासे किया जा रहा है, और जैसा कि इस पत्रके स्तम्भोंमें हालमें ही प्रमाणित किया गया है, भारतसे जहाजमें आनेवाले भारतीय यात्रीकी अवस्था भी किसी प्रकार ईर्ष्यायोग्य नहीं है।

१. देखिए खण्ड ४, पृष्ठ ३०१, ३२५ और ३३७।

२.देखिए खण्ड ३, पृष्ठ १८ ।