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१७९. नेटाल-सरकार रेल-प्रणाली और भारतीय

नेटाल-सरकार रेल-प्रणालीके कुछ स्टेशनोंपर भारतीय यात्रियोंको अनावश्यक असुविधाओंका सामना करना पड़ता है। इस सम्बन्धमें हमारे पास तीन भारतीयोंके हस्ताक्षरसे एक शिकायत आई है। उसे हम इस पत्रके गुजराती-स्तम्भोंमें प्रकाशित कर रहे हैं। पत्र-लेखकोंने लिखा है:

हमें आशा है कि आप हमारी शिकायतोंकी ओर अधिकारियोंका ध्यान खींचेंगे। १३ दिसम्बरको हमारे मित्र श्री वली आरिफ़ चार बजेकी डाक-गाड़ीसे जा रहे थे। हम उन्हें विदा करनेके लिए केन्द्रीय स्टेशनके प्लेटफॉर्मपर जाना चाहते थे, परन्तु वहाँ खड़े पुलिस सिपाहीने हमें वहाँ जानेसे असभ्यतापूर्वक रोक दिया। जब हमने उससे पूछा कि तुम हमें क्यों रोकते हो, उसने कठोरतासे जवाब दिया कि मैं तुम लोगोंको नहीं जाने दूंगा।

पत्र-लेखकोंने ऐसा ही और लिखा है। हम मानते हैं कि ऐसे अवसर हो सकते हैं जब यात्रियोंको विदाई देनेके लिए मित्रोंको असीमित संख्यामें भीतर जाने देना सम्भव न हो, परन्तु हमारा कहना है कि जब कभी लोगोंको प्लेटफॉर्मपर जानेसे रोका जाये, उन्हें समुचित उत्तर पाने और कारण जाननेका अधिकार तो होना ही चाहिए। हमें निश्चय है कि रेल-प्रणालीके प्रबन्धकर्ता भी हमारी यह बात मानेंगे। आशा है कि इस मामलेकी जाँच की जायेगी और हमारे पत्र-लेखकोंने जिस व्यवहारकी शिकायत की है उसकी पुनरावृत्ति न होने दी जायेगी।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-१२-१९०५

१८०. केपके भारतीय व्यापारी

पिछले सप्ताह हमारे केप-संवाददाताने भारतीय व्यापारियोंके प्रश्नपर लिखा था। हमें अपने पाठकोंको यह बतलानेकी आवश्यकता नहीं कि हमारे विशेष संवाददाताओंके लिए जरूरी नहीं कि वे इस पत्रके विचारों या नीतिके समर्थक ही हों। नियमानुसार हम किसी भी प्रश्नके सब पहलुओंको प्रकट करनेका यत्न करते हैं। यदि हमारे केप-संवाददाताने भारतीय व्यापारियोंके प्रश्नपर विस्तारसे चर्चा न की होती तो हमें इस बातपर जोर देनेकी जरूरत न पड़ती। हमारा विचार है कि छोटे भारतीय व्यापारियोंसे उपनिवेशको लाभ पहुंचा है। इस सम्बन्धमें हम, हालमें सर जेम्स हलेट और कुछ वर्ष पूर्व सर वाल्टर रैग, स्वर्गीय सर हेनरी बिन्स, और अन्य कई सज्जनों द्वारा प्रकट किये हुए विचारोंसे सहमत हैं कि, छोटा भारतीय व्यापारी उसी वर्गके अपने साथी व्यापारीकी अपेक्षा बहुत अच्छा आदमी है, और वह एक बहुत बड़ी आवश्यकताकी पूर्ति करता है। इसलिए उसकी स्वतन्त्रतापर कोई भी पाबन्दी लगाना उसके साथ भारी अन्याय होगा और केपके भारतीयोंको चाहिए कि इस दिशामें जो भी आक्रमण किया जाये, उसका वे डटकर मुकाबला करें।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-१२-१९०५