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फसल

भारतीय युवकोंसे यह अपील करते हुए हम उनका ध्यान उन ज्ञानोज्ज्वल शब्दोंकी ओर आकर्षित करेंगे जो कि प्रोफेसर गोखलेने लंदन भारतीय समाज (लन्दन इंडियन सोसाइटी) के सामने, श्री दादाभाई नौरोजीके और अपने सम्मानमें आयोजित एक स्वागत-समारोहके अवसरपर कहे थे। भारतके इन पितामहका उदात्त उदाहरण अपने श्रोताओंके सामने स्पष्टतासे प्रस्तुत करनेके पश्चात्, उन्होंने कहा था:

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे चारों ओर बड़ी-बड़ी घटनाएँ घटित हो रही है, और यदि हम संसारके इतिहासमें अपनी भूमिका पूरी करना चाहते हैं तो हमें अपने आपको उसके योग्य बनाकर दिखलाना होगा। मेरा खयाल है कि अब समय आ गया है जब कि हमारे कुछ युवकोंको अपने देशको सेवाके लिए सर्वस्व निछावर कर देना चाहिए। हमारे सामने जो कार्य पड़ा है उसकी विशालताका यह जबरदस्त तकाजा है। यदि हम सब अपने-अपने धन्धोंमें लगे रहें, अपना ध्यान मुख्यतः व्यक्तिगत स्वार्थोंमें लगायें और देशको भाग्य-भरोसे छोड़ दें तो काम जिस गतिसे चल रहा है उससे ज्यादा शीघ्रतासे न चलनेपर हमें शिकायत करनेका कोई अधिकार नहीं होगा। जबतक हमारे देशम शिक्षाका व्यापक प्रसार नहीं होता- और शिक्षासे मेरा मतलब केवल शिक्षाको प्रारम्भिक बातोसे नहीं है, बल्कि अपने अधिकारोंके, अपने प्राप्तव्यके, और इन अधिकारोंके साथ जो जिम्मेवारियाँ लगी हैं, उनके ज्ञानसे है-- जबतक इस शिक्षाका सर्वसाधारण जनतामें खूब प्रसार नहीं हो जाता, तबतक हमारी आशाएँ अनिश्चित काल तक निरी आशाएँ ही बनी रहेंगी। इसलिए हमारी कठिनाइयोंका एकमात्र हल यह है कि हम ऐसी शिक्षाकी आवश्यकता -- परम आवश्यकताको भलीभाँति समझ लें, और हममें से जो इसका प्रसार करनेके योग्य हों वे अपना कर्तव्य समझकर आगे बढ़ें और इस कामको अपने कन्धोंपर उठा लें। मेरा खयाल है कि आज इससे अधिक देशभक्तिका काम दूसरा नहीं हो सकता। यही वह जिम्मेवारी है जो हमारे परम श्रद्धेय नेताके वचनोंसे हमपर पड़ी है, और मैं साहसपूर्वक कहता हूँ कि देशको ऐसी आशा रखनेका अधिकार है कि उसके कुछ युवक वे आरम्भमें भले ही थोड़े हों, परन्तु उनकी संख्या निरन्तर बढ़ती जायेगी कर्तव्यको इस पुकारको पूरे ध्यानसे सुनेंगे और उसका प्रत्युत्तर देंगे। इतनी बात यदि पूरी हो जाये तो परिस्थिति समय-समयपर कितनी ही अन्धकारपूर्ण क्यों न प्रतीत हो, अन्तमें हमारे प्रयत्न अवश्य सफल होंगे, क्योंकि हमारी संख्या इतनी अधिक है कि यदि हम स्वयं ही न लड़खड़ा जाये तो संसारको कोई भी शक्ति हमारी प्रगतिको नहीं रोक सकती। स्मरण रखना चाहिए कि जो सचाई प्रोफेसर गोखलेके इन शब्दोंमें व्यक्त हुई है उसपर वे बीस वर्ष अपने जीवनमें अमल कर चुके हैं, और इन शब्दोंमें एक भी बात ऐसी नहीं जो म दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंपर लागू न होती हो। तो क्या कोई समयकी पुकार सुनकर आगे आयेगा? जो फसल पककर कटनेको तैयार है वह प्रभूत और समृद्ध है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-१२-१९०५