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१७७. पत्र: उच्चायुक्तके सचिवको

जोहानिसबर्ग

दिसम्बर २२, १९०५

महोदय,

मैं परमश्रेष्ठका ध्यान उन दो अध्यादेशोंके मसविदोंकी ओर दिलाना चाहता हूँ जो इस मासकी १५ तारीखके ऑरेंज रिवर उपनिवेशके सरकारी ‘गजट' में प्रकाशित हुए हैं। उनके नाम ये हैं : परवानोंके कानूनोंमें संशोधन करनेके लिए" और "ऑरेंज रिवर कालोनीकी सीमाके भीतर या बाहर काम या मजदूरी करनेके लिए रंगदार लोगोंकी भरती या नियुक्तिका नियमन और नियन्त्रण करनेके लिए" अध्यादेशोंके मसविदे।

मेरा संघ इन दो अध्यादेशोंके विवरणोंका विस्तारसे जिक्र करना नहीं चाहता है, परन्तु परमश्रेष्ठका ध्यान इस तथ्यकी ओर दिलानेका साहस करता है कि ब्रिटिश भारतीयोंके "रंगदार लोगों" संज्ञाकी व्याख्याके अन्तर्गत आनेके कारण ये दोनों अध्यादेश उनपर भी लागू होते हैं। व्यावहारिक रूपमें इनमेंसे कोई अध्यादेश ब्रिटिश भारतीयोंपर लागू नहीं होगा। इसलिए मेरे संघका खयाल है कि उक्त व्याख्यासे व्यक्त अपमान नितान्त अहेतुक है ।

इसलिए यदि परमश्रेष्ठ ब्रिटिश भारतीय संघकी तरफसे हस्तक्षेप करनेकी तथा इस अध्यादेशको आपत्तिजनक परिभाषासे, जो उपनिवेशको कोई लाभ तो पहुँचाती नहीं है, उलटे ब्रिटिश भारतीयोंके लिए बहुत ही सन्तापजनक है, मुक्त करनेकी कृपा करें तो मेरा संघ आभार मानेगा।

आपका आज्ञाकारी सेवक,

अब्दुल गनी

अध्यक्ष,

ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-१२-१९०५

१७८. फसल

फसल तो बेशक बहुत अच्छी है, परन्तु काटनेवाले थोड़े हैं। कार्यकर्ताओंके बिना बहुत-से काम करनेको पड़े हैं, और उनमें से प्रत्येक परमावश्यक है। परन्तु, यदि हमें यह चुनाव करना हो कि इन सबमें सबसे पहले कौन-सा काम करना चाहिये तो भारतीयोंमें शिक्षा-प्रसारका स्थान सर्वप्रथम रहेगा।

अब बड़े दिनकी छुट्टियाँ चल रही हैं। यह वर्ष शीघ्र ही समाप्त हो जायेगा। बहुत-से ब्रिटिश भारतीयोंके लिए, जो इन शब्दोंको पढ़ेंगे, ये दिन गम्भीर आध्यात्मिक चिन्तनके हैं; अथवा होने चाहिए, क्योंकि ईसाइयोंके लिए ये दिन पवित्रताके दिन होते है। इसलिए हम उन भारतीय युवकोंके, जो दक्षिण आफ्रिकामें ही जन्मे और पोषित हुए हैं और दक्षिण आफ्रिका ही जिनका घर है, हृदयोंके कोमलतम तारोंको झंकृत करना चाहते हैं। उनमें से जो शिक्षित