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ट्रान्सवालके अनुमतिपत्र

जानना है कि हमारे अधिकार क्या है; यह समझना है कि अधिकारोंके साथ हमारे उत्तर- दायित्व और कर्त्तव्य क्या हैं। इस प्रकारकी शिक्षा पाँच-पचीस व्यक्तियोंको मिल जाये, उतना बस नहीं है। उसे करोड़ों लोगोंमें फैलाना है। यह कैसे होगा? उसके लिए हमें तैयार होना होगा। उसके लिए हमें अपना समय देना होगा। सरकार इस प्रकारको शिक्षा देगी, यह आशा नहीं रखनी है। ऐसे नौजवानोंकी संख्या दिनोंदिन बढ़नी चाहिए। यह शिक्षा हमें दादाभाईकी जीवनीसे प्राप्त करनी है। तभी हमने उनका सम्मान किया, यह कहा जा सकता है। उनका नम्र स्वभाव, उनकी सादगी, उनका त्याग, उनकी आशा,उनकी दृढ़ता इन सब गुणोंका बखान करनेमें फायदा नहीं है, बल्कि उन गुणोंका अनुशीलन करना है। हमें देशके लिए बलिदान होनेकी उमंग रखनी चाहिए। अगर इस तरहके जोशीले नौजवान बड़ी संख्यामें तैयार हो जायें तो इस दुनियामें ऐसा कोई नहीं है जो हमें सता सके। यह होगा तभी हमारे ऊपरसे घटाएँ टलेंगी; तभी हम विजय पायेंगे, तभी भारत आगे बढ़ेगा, तभी हमारा दैन्य दूर होगा, और हमारा तेज संसारमें प्रकाशित होगा, और तभी आज हम जिसका स्वप्न देख रहे हैं, कल साकार होगा।'

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-१२-१९०५

१७५. ट्रान्सवालके अनुमतिपत्र

भारतीयोंको अनुमतिपत्र देनेके सम्बन्धमें बड़े फेरफार हो रहे हैं। जो अनुमतिपत्र-कार्यालय जोहानिसबर्गमें चल रहा है, उसका कब्जा पूरी तरहसे औपनिवेशिक कार्यालयको देनेका आदेश लॉर्ड सेल्बोर्नने दिया है। जान पड़ता है, यह परिवर्तन ज्यादातर शिष्टमण्डलके' प्रयत्नोंके कारण हुआ है। अब भारतीयोंकी स्थितिका सुधरना या बिगड़ना इस परिवर्तनके रूपपर निर्भर है। हमारी धारणा है कि वह सुधरेगी, भले फिलहाल थोड़े समयके लिए हमें कुछ परेशानियाँ भोगनी पड़ें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-१२-१९०५



१. देखिए "शिष्टमण्डल : लॉर्ड सेल्बोर्नकी सेवामें", पृष्ठ १५०-८।