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उद्धरण : दादाभाई नौरोजीके नाम पत्रसे

तरीकोंकी तेज गन्ध आती है। हम आशा करते हैं कि साम्राज्यके उज्ज्वल नाम और यशको ध्यानमें रखते हुए लॉर्ड सेल्बोर्न अपने वचनके अनुसार मामलेकी छानबीन करेंगे और भारतीयोंको सन्तोष देंगे, जो उन्हें अधिकार और न्यायकी दृष्टिसे मिलना चाहिए; क्योंकि लॉर्ड सेल्बोर्न साम्राज्यके उज्ज्वल नाम और यशके योग्य संरक्षक हैं।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-१२-१९०५

१७१. उद्धरण : दादाभाई नौरोजीके नाम पत्रसे[१]

[जोहानिसबर्ग]

दिसम्बर ११, १९०५

ब्रिटिश भारतीय संघकी ओरसे लॉर्ड सेल्बोर्नसे जो शिष्टमण्डल मिला था, उसका पूरा विवरण इस सप्ताहके 'इंडियन ओपिनियन' में आयेगा।

इस भेंटमें जो प्रश्न उठाये गये और जिनपर विचार हुआ वे मेरी विनम्र रायमें बहुत महत्त्वपूर्ण हैं और इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण सर आर्थर लाली द्वारा प्रतिपादित वर्ग-विधानके सिद्धान्तका प्रश्न और ब्रिटिश भारतीय संघ द्वारा उसका विरोध है। सर आर्थर लालीके सुझावोंका मंशा है, यूरोपीय विद्वेषसे समझौता कर लेना। ब्रिटिश भारतीय संघका भी यही प्रस्ताव है। यदि कोई बात है, तो ब्रिटिश भारतीय संघका प्रस्ताव सर आर्थर लालीके सुझावकी अपेक्षा अधिक पूर्णताके साथ यूरोपीय दृष्टिकोणको तुष्ट करता है। यह समझना कठिन है कि उन्होंने वर्गोके बीच भेदभावपर इतना अधिक जोर क्यों दिया है। परन्तु यदि वह सिद्धान्त मान लिया जाये तो दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीयोंपर लगाये जानेवाले नियन्त्रणोंका कोई अन्त नहीं रहेगा। इसलिए यह सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। ब्रिटिश भारतीय संघने जिन मामलोंपर जोर दिया, उनपर लॉर्ड सेल्बोर्नने खुलकर विचार नहीं किया, इससे प्रकट होता है कि श्री लिटिलटनने सर आर्थरके सुझावोंको अभीतक अंगीकार नहीं किया है।

[अंग्रेजीसे]
इंडिया ऑफिस : ज्यूडीशियल और पब्लिक रेकर्ड्स ४२८९/१९०६




१. इसे दादाभाई नौरोजीने भारत-मन्त्री के नाम अपने जनवरी १, १९०६के पत्रमें उद्धृत किया था।

२. देखिए "शिष्टमण्डल : लॉर्ड सेल्बोर्नकी सेवामें", पृष्ठ १५०-८।

  1. १.