पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/१९६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१७०. लॉर्ड सेल्बोर्न और ब्रिटिश भारतीय

ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय संघकी ओरसे गत तारीख २९, बुधवारको एक शिष्टमण्डल लॉर्ड सेल्बोर्नसे मिला था। उस भेटका विवरण हम अन्यत्र प्रकाशित कर रहे हैं।

ब्रिटिश भारतीय संघने लॉर्ड सेल्बोर्नके सामने विस्तारसे परिस्थिति रखकर अच्छा किया है। ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंकी ओरसे लॉर्ड सेल्बोर्नके सामने जो बातें पेश की गई है, वे हमें बहुत उचित और नरम लगी हैं। परमश्रेष्ठको भी वे ऐसी ही प्रतीत हुई होंगी। वास्तवमें परम- श्रेष्ठने इस वक्तव्यकी इस अत्यधिक तर्कसंगति" को स्वीकार किया कि जो प्रतिबन्ध हर दृष्टिसे अनिवार्य हों, केवल वही प्रभावकारी हो सकते हैं। यदि इस दृष्टिसे जाँच की जाये तो शिष्टमण्डलने परमश्रेष्ठके समक्ष जो निवेदन किया है, उसमें मुख्य रूपसे दो बातें सामने आती हैं। भारतीय इस बातको मानते हैं कि ट्रान्सवालमें उनके विरुद्ध पूर्वग्रह हैं; और वे यह भी मानते है कि इसका कारण भारतीय व्यापारियों द्वारा अनुचित व्यापारिक स्पर्धा और देशमें भारतीयोंके अनुचित प्रवेशका. भय है (जहाँतक प्रस्तुत विषयका सम्बन्ध है, यह देखना आवश्यक नहीं है कि यह भय उचित या अनुचित है) । भारतीय इन दोनों आपत्तियोंका निराकरण जिस ढंगसे करना चाहते हैं, वह ढंग उन सब लोगों द्वारा प्रशंसित होगा जिन्होंने शक्तिशाली पूर्वग्रहके कारण अपनी न्यायदृष्टि खो नहीं दी है। यदि शैक्षणिक कसौटीके लिए भारतीय भाषाओंके पक्षमें व्यवस्था करके केप या नेटालके आधारपर सर्वसाधारण ढंगका प्रवासी-प्रतिबन्धक कानून बनाया जाये तो उससे सब उचित जरूरतें पूरी हो जाना सम्भव है। साधारणतया आत्मत्याग जैसी भावनाकी आशा नहीं की जा सकती। पर ब्रिटिश भारतीय संघ तो इससे भी आगे गया है और उसने सुझाया है कि सभी नये व्यापारिक अनुमतिपत्रोंपर उपनिवेशके सर्वोच्च न्यायालयमें सुनवाईके अधिकारके साथ स्थानीय निकायों और नगरपरिषदोंका नियन्त्रण स्वीकार किया जायेगा। यह ट्रान्सवालके भारतीय-विरोधी आन्दोलनकारियोंके सामने एक स्वीकृति योग्य शान्ति-प्रस्ताव है। यही लोग भारतीय अनुमतिपत्रोंके विरुद्ध चिल्लाते है और यही वे लोग हैं जो नगरपालिकाओंके प्रतिनिधि चुनते है अथवा स्वयं इस प्रकारके प्रतिनिधि चुने जाते हैं। भारतीय व्यापारियोंके समाजको इनकी ईमानदारी और न्याय-बुद्धिपर इतना भरोसा है कि वे अपना भविष्य उनके हाथों में सौंपते हुए हिचकते नहीं हैं। इससे अधिक करनेकी आशा उससे नहीं की जा सकती; और यदि कुछ अधिक किया जाता है और ऐसा मित्रतापूर्ण हाथ बढ़ानेके बावजूद बर्गभेदपर आधारित कानून जान-बूझ कर बनाया जाता है, तो यह सारी-की-सारी "तर्कसंगति" व्यर्थ चली जायेगी और, जैसा कि शिष्टमण्डलने कहा है, उस स्वतंत्रताका अन्त हो जायेगा जिसे ब्रिटिश झंडेके नीचे रहते हुए भार- तीय अपनी अमूल्य विरासत समझने लगे हैं। शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अमलका ढंग जानकर बहुतोंको बड़ा दुःख और आश्चर्य होगा। लॉर्ड सेल्बोर्नका ध्यान उन बातोंकी ओर आकर्षित किया गया था और यद्यपि वे उन बातोंपर चुप रहे, हमारा खयाल है कि उन्होंने अवश्य ही उनमें से कुछको तीव्र असहमतिकी दृष्टिसे देखा होगा । १६ सालसे कम उम्रके बच्चोंसे ऐसी आशा रखना कि यदि उनके माता-पिता ट्रान्सवालके निवासी न हों तो उन्हें अपने साथ अनुमतिपत्र रखने चाहिए, अन्यथा उन्हें वापस भेज दिया जायेगा; और भारतीय स्त्रियोंसे भी पंजीकरणके प्रमाण- पत्र निकलवानेकी माँग करना- ये बड़ी ही शर्मनाक बातें हैं। इस तरहके प्रतिबन्धोंसे रूसी

१. देखिए "शिष्टमण्डल : लॉर्ड सेल्बोर्नकी सेवामें", पृष्ठ १५०-८।