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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमने यह सुझाव भी दिया है कि व्यापारके जो परवाने इतनी अधिक शिकायतका कारण बने हुए हैं उन्हें जारी करने-न-करनेका अधिकार स्थानिक निकायों या नगर-परिषदोंको दे दिया जाये, परन्तु उनपर अन्तिम नियन्त्रण सर्वोच्च न्यायालयका रहे। वर्तमान सब परवानोंपर यह नया कानून लागू न हो, क्योंकि ये परवाने निहित अधिकारोंको प्रकट करते है। हम अनुभव करते हैं कि ये दो कानून बनाकर १८८५ के कानून ३ को वापस ले लिया जाता तो भारतीयोंके साथ कुछ, केवल कुछ, न्याय हो जाता। हमारा निवेदन है कि हमें जमीनका मालिक बनने, और स्वास्थ्य-रक्षा तथा इमारतोंकी बाहरी शकल-सूरत आदिके साधारण नगरपालिका- नियमोंका पालन करते हुए जहाँ चाहें वहाँ रहनेकी पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए; और जबतक नया कानून बने तबतक शान्ति-रक्षा अध्यादेशका प्रयोग नये कानूनकी भावनाके अनुसार करना और १८८५ के कानून ३ का अर्थ उदारतासे लगाना चाहिए। मुझे यह कानून ब्रिटिश संविधानकी उस भावनाके विरुद्ध लगता है जो कि बचपनसे मुझे सिखलाई गई है; और मेरे देशवासी यह नहीं समझ सकते कि जो ब्रिटिश झंडा विदेशियों तक की रक्षा करता है उसके नीचे उसीके प्रजाजनोंको फुट-भर जमीन तक का, जबतक वे उसका सदुपयोग करते हैं, मालिक होनेसे क्यों रोक दिया जाता है। इसलिए मेरे संघने जो शर्ते पेश की हैं उनके अनुसार सरकारके लिए यह सम्भव होना चाहिए कि वह इस उपनिवेशकी कानून-पुस्तकमें से ऐसे कानून निकाल दे, जिनसे ब्रिटिश भारतीयोंका अपमान होता है। जब हमें अपने खाने-कपड़े और जीवन-मृत्युके प्रश्नोंपर विचार करना पड़ रहा है तब मैं पैदल चलनेकी पटरियोंके नियमों जैसे प्रश्नोंकी चर्चा करना नहीं चाहता। राजनीतिक अधिकारोंकी चाह हमें नहीं है, परन्तु हम अन्य ब्रिटिश प्रजाजनोंके साथ शान्ति और मित्रतापूर्वक, शान और सम्मान सहित अवश्य रहना चाहते हैं। इसलिए हम अनुभव करते हैं कि जिस क्षण सम्राटकी सरकार विभिन्न वर्गोंमें भेद-सूचक कानून बनानेका निश्चय करेगी उसी क्षण उस स्वतंत्रताकी समाप्ति हो जायेगी जिसे हमने ब्रिटिश सम्राटके शासनमें रहते हुए एक अमूल्य पैतृक सम्पत्ति मानना सीखा है।

वक्तव्य[१]

रंगदार लोगों और, इसी कारण, भारतीयोंपर लागू होनेवाले कानूनोंके अलावा ये कानून भी मौजूद हैं : शान्ति-रक्षा अध्यादेश तथा १८८६ में संशोधित १८८५ का कानून ३ ।

यद्यपि शान्ति-रक्षा अध्यादेश, जैसा कि नामसे ज्ञात होता है, खतरनाक लोगोंको उप- निवेशसे दूर रखनेके लिए बनाया गया था, तथापि उसका उपयोग मुख्यतया ब्रिटिश भारतीयोंका ट्रान्सवाल-प्रवेश रोकने के लिए किया जा रहा है।

कानूनका उपयोग सदैव कठोर एवं अत्याचारपूर्ण ढंगसे किया जाता रहा है।और यह तब होता रहा है जबकि मुख्य अनुमतिपत्र-सचिव चाहते हैं कि ऐसा न किया जाये। उन्हें उपनिवेश-कार्यालयसे हिदायतें लेनी पड़ती हैं। इसलिए कानूनको कठोरताके साथ उपयोगमें लानेका कारण विभागका मुख्य अधिकारी नहीं, बल्कि वह प्रणाली है जिसके अन्तर्गत यह कानून उपयोगमें लाया जाता है।

(क) अभी सैकड़ों शरणार्थी आनेकी प्रतीक्षामें हैं।

(ख) लड़कोंके लिए, चाहे वे अपने माता-पिताओंके साथ हों या उनके बिना, अनुमति- पत्र लेना जरूरी है।

१. यह दिसम्बर २ के और इसके पूर्व आनेवाला वक्तव्य ९ दिसम्बर १९०५ के 'इंडियन ओपिनियन' में छपा था।

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