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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पार्सनने नवाबजादाकी सजा खारिज कर दी और श्री लेलीको बुरी तरह झिड़का । ऐसी जीते तो जनाब बदरुद्दीनकी अनेक हुई थी, लेकिन एक इज्जतदार आदमीको बदनामीसे उबार कर जेल जानेसे बचा लिया, इससे बदरुद्दीन तैयबकी शोहरतमें चार चाँद लग गये। कुछ समय बाद बम्बई सरकारने उनको न्यायाधीशका पद दिया और उन्होंने उसे स्वीकार किया। यद्यपि जजका वेतन प्रति माह ३,७५० रुपया है फिर भी न्यायमूर्ति बदरुद्दीनको तो उस वेतनमें घाटा ही है। कहा जाता है कि बकालतमें उनकी वार्षिक आय १,००,००० रुपया थी। न्यायाधीशकी हैसियतसे न्यायमूर्ति बदरुद्दीनने जो काम किया वह बहुत उत्तम माना जाता है। वे अत्यन्त स्वतन्त्रतापूर्वक निर्णय देते हैं और वकील और मुवक्किल सबको सन्तुष्ट करते हैं।

न्यायमूर्ति बदरुद्दीनने जिस प्रकार विद्वत्ता और अपने पेशेमें नाम पाया है उसी प्रकार सार्वजनिक कार्योंमें भी नाम पाया है। भारतीयोंमें, और उनमें भी खासकर मुसलमानोंमें, शिक्षा फैलानेके लिए उन्होंने बड़ी मेहनत की है। स्त्रियोंकी शिक्षाको वे सदैव बढ़ावा देते हैं। उनकी धर्मपत्नी और बेटियाँ सभी अच्छी शिक्षित हैं। राजनीतिक कामोंमें उन्होंने काफी हाथ बँटाया है। न्यायमूर्ति रानडेके साथ उन्होंने बहुत काम किया है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके वे अग्रणी रहे हैं और कांग्रेसके अध्यक्ष भी बने हैं। उनका अध्यक्षीय भाषण इतना अच्छा था कि अबतक उसकी गणना उत्तम भाषणोंमें की जाती है। वे न्यायकी कुर्सीपर बैठे हैं, फिर भी देशाभिमान वैसा ही रखते हैं। शिक्षाके काममें योग देते हैं। स्वभावसे विनम्र और दयालु हैं। उनका अंग्रेजीका ज्ञान जितना उत्तम है उतना ही उत्तम उनका हिन्दुस्तानीका ज्ञान है। उ में भाषण करनेमें बम्बई इलाकेमें उनका मुकाबला बिरले ही कर पायेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-११-१९०५


१६१. शिष्टमण्डल लॉर्ड सेल्बोर्नकी सेवामें

टान्सवालके ब्रिटिश भारतीयों की स्थितिपर वक्तव्य देने के पहले, गांधीजीने लॉर्ड सेखान के सामने निम्न निवेदन किया:

[जोहानिसबर्ग]

नवम्बर २९,१९०५

इस शिष्टमण्डलके विषयकी चर्चा आरम्भ करनेसे पूर्व, मैं परमश्रेष्ठका सम्मानपूर्वक धन्य- वाद करता हूँ कि आपने इतने व्यस्त होते हुए भी इस शिष्टमण्डलसे मिलनेके लिए समय निकाल लिया। परमश्रेष्ठकी सेवामें जो प्रश्न उपस्थित किये गये उनमें से प्रत्येकमें आप व्यक्तिशः रुचि लेते रहे हैं, इसलिये हमने सोचा कि केवल प्रार्थनापत्र भेजते रहनेके स्थानपर हमें अपने भावों और विचारोंको अधिक प्रत्यक्ष रूपमें प्रगट करनेके अवसरकी तलाश करनी चाहिए।

१. सन् १८८७ में मद्रासमें हुए तृतीय अधिवेशनके।

२. शिष्टमण्डलके नेता गांधीजी थे और वह नवम्बर २९, १९०५ को दुपहरवाद ३ बजे लॉर्ड सेल्बोनसे मिला था। उसके सदस्य थे: सर्व श्री अब्दुल गनी, अध्यक्ष, विटिश भारतीय संघः हाजी हबीब, मन्त्री, प्रिटोरिया समिति; श्री ई० एस० कुवाडिया, मूनस्वामी मूनलाइट और अव्यूव हाजी बेग मुहम्मद ।