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बदरुद्दीन तैयबजी

अनुचित व्यवहारसे उनकी रक्षा करे। हम मानते हैं कि जिन भारतीयोंपर इस कानूनका प्रभाव पड़ता है उनमें से कई तुनुक-मिजाज भी होते हैं, परन्तु इसमें आश्चर्यकी बात कुछ नहीं है । शायद यह भी सत्य है कि अपने इस स्वभावके कारण वे कभी-कभी अनजाने ही ज्यादती कर बैठते हैं। परन्तु दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंको जिन परिस्थितियोंमें रहना पड़ता है उनमें रहनेवाले व्यक्ति इससे भी बहुत आगे बढ़ते देखे गये हैं। भारतीय उतना आगे न कभी बढ़े हैं और न उनसे वैसी सम्भावना की जा सकती है। जिस अधिकारीको निरन्तर लोगोंकी स्वाभाविक स्वतन्त्रताको नियन्त्रित करते रहनेके अप्रिय कर्त्तव्यका पालन करते रहना पड़ता हो उसका स्वभाव ऐसा हो जाना सम्भव है कि वह उस कामको भी अपराध मान बैठे जो परेशानियों और पाबन्दियोंकी परिस्थितिमें किसी भी मनुष्यकी मानसिक अवस्थाका अति स्वाभाविक परि- णाम हो सकता है। भारतीयोंको जिस विचित्र परिस्थितिमें डाल दिया गया है उसमें रहनेवाले लोगोंके साथ अंशमात्र भी न्याय करना हो तो सूक्ष्मदर्शी व्यक्तियों तक को उक्त बात सदा अपने ध्यानमें रखनी होगी।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-११-१९०५

१६०. बदरुद्दीन तैयबजी[१]

बदरुद्दीन तैयबजीका नाम भारतमें सुविख्यात है। बम्बई इलाके में तो उनका नाम सभी जानते हैं। बदरुद्दीन तैयबजीने बहुत छोटी उम्रमें ही अपनी शक्तिका परिचय दिया और पाठ- शालामें वे बहुत अच्छे विद्यार्थी थे। उनकी पढ़ाई इतनी अच्छी थी कि उनके बुजुर्गोंने उन्हें विलायत भेजनेका विचार किया। सर फीरोजशाह और बदरुद्दीन तैयबजी हमजोलीके साथी थे और एक ही समयके विद्यार्थी थे।

बम्बईसे विलायत जानेवाले भारतीयोंमें वे लगभग पहले व्यक्ति थे। विलायतमें उन्होंने बहुत अच्छा विद्याभ्यास किया। वहाँ सम्मान प्राप्त करके वे बम्बई लौट आये और बैरिस्टरके रूपमें उन्होंने बहुत ख्याति प्राप्त की। बदरुद्दीन तैयबजीकी तुलना सदैव बड़े अंग्रेज बैरिस्टरोंसे की जाती थी। उन्होंने सुप्रसिद्ध बैरिस्टर ऐन्स्टे तथा इनवेरारिटीसे टक्करें ली थीं। जब वे बैरिस्टरी करते थे तब क्वचित् ही ऐसे बड़े मुकदमे होते थे जिनमें दोनों पक्षोंमें से किसी एकमें उन्हें न रखा गया हो। उनकी वक्तृत्व-शक्ति और कानूनी ज्ञान बड़े ऊंचे दर्जेका था; इसलिये वे न्यायाधीशोंको खुश करते थे और पंचोंका मन हर लेते थे। सौराष्ट्रमें बड़े रियासती मुकदमोंके लिए वे बहुत बार आये और विजयी हुए है। किन्तु नवाबजादा नसरुल्ला खाँके बचावका मुकदमा उनका सबसे बड़ा मुकदमा माना जायेगा। सूरतके कलेक्टर श्री लेलीने नवाबजादापर १०,००० रुपयेकी रिश्वत देनेका इल्जाम लगाया था। श्री लेलीने इस संबंध बहुत कड़ी गवाही दी और बम्बईके मुख्य मजिस्ट्रेट श्री स्लेटरने बड़ा कठोर निर्णय दिया और नवाबजादाको छ: महीनेकी कैदको सजा दे दी। इस निर्णयके खिलाफ अपीलमें जनाव बदरुद्दीन तैयबजीको खड़ा किया गया था। उन्होंने ऐसी बढ़िया कानूनी दलीलें पेश की कि न्यायमूर्ति

१. (१८४४-१९०६)।

२.देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३९५ ।

  1. १.