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माउंटस्टुअर्ट एलफिन्स्टन

होलकर आदि अंग्रेजोंपर चढ़ाई करनेके लिए अधीर हो उठे थे। पूनाका पेशवा अंग्रेजोंके पक्षमें था। परन्तु वह बहुत कमजोर था। उसका दीवान त्र्यंबकजी बड़ा खटरागी था। उसने कोई घोर कुकर्म किया था, इसलिए पेशवाकी मंशा न होनेपर भी उसे कैद कर दिया गया था। कैदसे वह भाग निकला था और हाथ नहीं आ रहा था। एलफिन्स्टनको पता चला कि स्वयं पेशवा अंग्रेजी राज्यके खिलाफ चाल चल रहा है। उसके पास बचावके लिए साधन-सामग्री बहुत कम थी, फिर भी वह डरा नहीं। यद्यपि उसकी जानकारीमें सारी बातें आती रहती थीं फिर भी वह इतनी गम्भीरतासे रहा कि उसकी तैयारियोंको कोई जान न सका। अन्तमें पेशवाने खुल्लम-खुल्ला विरोध किया। पेशवाई फौजने अंग्रेजी छावनीपर धावा बोल दिया और एलफिन्स्टनने अपने मुट्ठी-भर आदमियोंकी मददसे उस फौजको भगा दिया। इस बीच जनरल स्मिथ एलफिन्स्टनकी सहायताको आ गया। बाजीराव पेशवाकी पूरी हार हुई और पूना अंग्रेज सरकारने ले लिया। बाजीरावको पेंशन दी गई। एलफिन्स्टनकी इस समयकी बहादुरीके बारेमें विख्यात कैनिंग कह गया है:

'एलफिन्स्टन दीवानी अधिकारी है। हम अपने दीवानी अधिकारियोंसे युद्धमें पराक्रमको आशा नहीं रखते। हमारे पास योद्धा है। इन योद्धाओंमें एलफिन्स्टन शानदार योद्धा है, यह उसने पेशवाओंकी लड़ाई में दिखा दिया है। वह दीवानी काममें सर्वप्रथम है यह सब जानते हैं।"

बाजीरावके साथकी लड़ाई समाप्त होनेपर एलफिन्स्टनका काम और भी कठिन हो गया। अब उसे लोगोंपर राज्य करना था। उस समयके अंग्रेज शासक जनताके प्रति बड़ी सद्भावना रखते थे। जनतापर राज्य करते समय नये कानून बनाते थे। वे पहले यह विचार करते कि लोग किस प्रकारके राज्यसे परिचित हैं और उनको किस प्रकारका राज्य पसन्द आयेगा। एलफिन्स्टनने यही किया। पुराने मराठा परिवार किस प्रकार बने रहें, इस सम्बन्धमें उसने बहुत सावधानी बरती। उनकी जागीरोंको हाथ नहीं लगाया और इसी विचारसे उसने शिवाजीके उत्तराधिकारियोंके लिए सतारा राज्यको स्थापना की। मराठे लोग इससे बहुत खुश हुए। उसने लोगोंकी भावनाओंको जाननेका प्रयत्न किया और उनको ठेस न पहुँचे, यह ख्याल रखा।

इस प्रकार सहृदय एलफिन्स्टन सन् १८१९ में बम्बईका गवर्नर नियुक्त हुआ। उसने लोगोंके मन हर लिये। शिक्षापर उसने बहुत ध्यान दिया। भारतमें लोगोंको शिक्षा देना अंग्रेज सरकारका प्रथम कर्त्तव्य है, ऐसा समझनेवालोंमें एलफिन्स्टन पहला व्यक्ति माना जा सकता है। इस समय बम्बईमें जो एलफिन्स्टन कॉलेज है वह इस लोकप्रिय गवर्नरकी स्मृतिमें स्थापित हुआ है। न्याय विभागमें भी उसने बहुत सुधार किये हैं। इस प्रकार उसने बम्बईमें आठ वर्ष तक राज्य संचालन किया। जब उसने बम्बईका राज्यपद छोड़ा तब हर कौमकी ओरसे उसका बहुत सम्मान किया गया। इसके बाद उसने अपना बाकी समय विलायतमें बिताया और भारतका इतिहास लिखा। उस पुस्तककी प्रशंसा आज भी की जाती है। उसको गवर्नर जनरलका पद देनेकी विलायतमें दो बार कोशिश की गई; परन्तु अपने स्वास्थ्यकी खराबीके कारण उसने यह बड़ा पद लेनेसे इनकार कर दिया। दिसम्बर २१,१८५९ को ८१ वर्षकी आयुमें इस महान पुरुषकी मृत्यु हो गई।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-११-१९०५