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१५१. बन्दरगाहमें भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार

'सोमाली' जहाजके भारतीय यात्रियोंके साथ नेटाल बन्दरगाह पहुँचनेपर दुर्व्यवहार होनेकी जो बात कही गई है, उसके विषयमें गत सप्ताह म लिख चुके हैं। इस तथ्यके समर्थन में हमें एक दूसरे व्यक्तिका पत्र मिला है। उसने गुजरातीमें लिखा है। उसका भाव यह है:

जिन लोगोंके पास ट्रान्सवालके अनुमतिपत्र नहीं थे, परन्तु जो लोग ट्रान्सवालके शरणार्थी थे, और जिन अन्य लोगोंके पास नेटालके पास नहीं थे, उन्हें बहुत तकलीफ दी गई। तीन दिन तक उन लोगोंको जहाजके गोदाममें रखा गया। वे अपने भोजनके लिए भी किन्हीं चीजोंका प्रबन्ध नहीं कर सके। तीसरे दिन डर्बनके व्यापारी श्री हासम जुमाने वकीलको मारफत तजवीज की और लगभग पाँच लोगोंको उतरवाया। जब श्री हासम जुमा स्वयं जमानत दाखिल करने गये, वह मंजूर नहीं की गई। वकीलके आने- पर ही बड़ी मुश्किलसे वे उतारे गये। जो यात्री डेलागोआ-बेमें नहीं उतर सके थे, उन्हें भी तालेमें रखा गया, और उन्हें भोजन बनानेकी आज्ञा नहीं मिली।

हम ऊपर कही गयी बातकी ओर श्री हैरी स्मिथका ध्यान आकर्षित करते हैं। यदि यह सच है तो इस दुःखको शब्दोंमें नहीं कहा जा सकता। और यदि यह सच हो कि किसी वकीलके हस्तक्षेपपर ही यात्राके पासोंकी अनुमति मिली तो यह बहुत स्पष्ट है कि कहीं-न-कहीं कोई बड़ी खराबी जरूर है। वस्तुस्थिति यह है कि बेचारे भारतीयोंको उपनिवेशमें बसने या अस्थायी तौरपर रहने के अपने अधिकारोंकी पूर्ति कराने के लिए बहुत परेशानी और खर्च उठाना पड़ता है। प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियमको उचित ढंगसे लागू करनेके खिलाफ हमें कुछ नहीं कहना है । किन्तु हम निश्चय ही यह सोचते हैं कि जिन्हें उपनिवेशमें उतरनेका अधिकार है अथवा जिन्हें किसी पड़ोसी उपनिवेशमें जानेके लिए नेटालसे होकर गुजरनेकी प्रत्येक सुविधा दी जानी चाहिए उनपर केवल नियम-निर्वाहके लिए वकील करनेका खर्च नहीं लादा जाना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-११-१९०५




१. देखिए "नेटालका प्रवासी-अधिनियम", पृष्ठ १३६।