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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं। उनका काम सब प्रकारसे इतना अच्छा था कि १८९३ में उनको मुख्य न्यायाधीशकी जगह मिली। सन् १८९५ में सर मुतुस्वामी ऐयरको केवल कामके बोझसे क्षीण हो जानेके कारण मृत्यु हो गई।

सर मुतुस्वामी ऐयर न्यायमें अद्वितीय थे, इतना ही नहीं, वे भारतीय जनताको भलाईके कामोंमें जितना सम्भव हो सकता था उतना हिस्सा लेते थे। बाल-विवाह, विधवा-विवाह, विदेश-यात्रा, आदि विषयोंपर समय-समयपर व्याख्यान देते थे और सुधारकोंको प्रोत्साहन देते थे। वे स्वयं बड़े दयालु और सरल थे। सदा स्वदेशी पोशाक ही पहनते थे। ईश्वर-भक्तिमें लीन रहते थे। उन्होंने अपने सुयशसे मद्रास इलाकेको जगमगा दिया था।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन,११-११-१९०५


१५०. भारतीय स्वयंसेवक-दल

युद्ध कालमें भारतीयोंपर सेवाकी जिम्मेवारी डालनेके सम्बन्धमें पिछले सप्ताह हमने, न्यू- कैसिलकी एक राजनीतिक सभामें हुए कुछ प्रश्नोत्तर 'नेटाल विटनेस' से उद्धृत किये थे।

श्री थॉरल्डने जोर दिया कि यदि प्रतिरक्षाके लिए प्रथम पंक्तिके निर्माणका आह्वान किया जाये तो कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे कि अरबों और भारतीयोंको भी सहायता करनेके लिए कहा जा सके। जब यूरोपीय लोग मोर्चेपर लड़ रहे हों, तब अरबोंको अपनी दूकानोंमें बैठे रहकर व्यापार करते रहने देना स्पष्ट ही अनुचित होगा। श्री थॉरल्ड यदि सरकारकी आन्तरिक कार्य-पद्धतिसे परिचित होते तो वे ऐसे शब्द न कहते जो उनके कहे बतलाये गये हैं। सरकार भारतीयोंको यह दिखलानेका 'मौका ही नहीं देना चाहती' कि वे भी उपनिवेशकी प्रतिरक्षा में अन्य लोगोंके समान भाग ले सकते हैं । स्मरण रहे कि बोअर युद्धके समय भारतीयोंने स्वयं यह इच्छा प्रकट की थी कि उन्हें जो भी काम दिया जायेगा उसे वे करनेके लिए तैयार हैं। परन्तु घायल सिपाहियोंको ढोकर लानेके काम तक के लिए अपनी सेवाएँ स्वीकृत करवाने में उन्हें भारी कठिनाई हुई थी। जनरल बुलरने प्रमाणित कर दिया है कि नेटाल भारतीय आहत-सहायक दलने कैसा काम किया था। यदि सरकार केवल इतना अनुभव कर सकती कि कितनी सुरक्षित शक्ति व्यर्थ नष्ट हो रही है तो वह इसका उपयोग कर लेती और भारतीयोंको वास्तविक युद्ध के लिए पूर्ण प्रशिक्षणका अवसर देती। कानूनकी पुस्तकमें इसी प्रयोजनका एक कानून भी है, परन्तु निरे विद्वेषके कारण उसे निकम्मा हो जाने दिया गया है। हमारा तो विश्वास है कि उपनिवेशमें जन्मे भारतीयोंका एक बड़ा सुन्दर स्वयंसेवक-दल बन सकता है; और वह चुस्ती और मुस्तैदीके लिहाजसे, शान्तिके दिनों में ही नहीं, युद्धके समयमें भी नेटालमें किसीसे भी पीछे नहीं रहेगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-११-१९०५


१.देखिए खंड ३, पृष्ठ १३८९-९।