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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह सब रूसी प्रजा बहुत बरसोंसे सहन करती आ रही है। परन्तु अब तो उसके धैर्यका अन्त आ गया है। रूसी लोगोंने इन सारे अत्याचारोंको दूर करनेके लिए बहुत हाथ-पैर पटके है। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। उन्होंने विद्रोह किये, शाहंशाहोंके खून किये, पर इससे कुछ भी काम नहीं बना। अब उन्होंने एक अन्य उपाय ढूंढ़ निकाला है। वह बड़ा सरल है, और विद्रोह व खूनके मुकाबले ज्यादा जोरदार है। रूसी कारीगर और दूसरे सब नौकरोंने हड़ताल करके काम बन्द कर दिया है, सेवाएँ बन्द कर दी है और जारको खबर दी है कि जबतक न्याय नहीं मिलेगा तबतक वे लोग कामपर बिलकुल नहीं जायेंगे। इसके खिलाफ जार भी क्या कर सकता है? लोगोंसे जबरदस्ती तो काम नहीं लिया जा सकता। काम न करनेवालोंको भालेकी नोंकपर चढ़ाना तो रूसके जारके भी अधिकारमें नहीं है। इसलिए अब ज़ारने ढिंढोरा पीटकर ऐलान किया है कि राज्यके संचालनमें प्रजाको भी हिस्सा मिलेगा। प्रजाकी सम्मतिके बिना ज़ार एक भी कानून नहीं बनायेगा। इन सब बातोंका अन्तिम परिणाम क्या होगा यह कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन जार अपने वादेको अमलमें नहीं लायेगा तो उससे यह साबित नहीं होगा कि जनताने इस समय जो उपाय हाथमें लिया है वह ठीक नहीं है। उससे सिर्फ इतना ही साबित होगा कि लोगोंने अपने उपायमें दृढ़ता नहीं बरती; क्योंकि सत्ताधारी भी लोगोंकी मददके बिना अपनी सत्ताका उपभोग नहीं कर सकते। परन्तु यदि रूसी प्रजा कामयाब हो गई तो रूसमें होनेवाला परिवर्तन' इस शताब्दीकी बड़ी से बड़ी जीत और बड़ी से बड़ी घटना कहलायेगा।

हमने शीर्षकमें रूस और भारत दोनोंको जोड़ा है। इसलिए अब यह बताना शेष है कि रूसमें होनेवाली घटनाओंके साथ भारतका क्या सम्बन्ध है। भारतकी वर्तमान राज्य-व्यवस्था और रूसकी राज्य-व्यवस्थामें बहुत समानता है। वाइसरायकी सत्ता जारकी सत्तासे कुछ कम नहीं है। जिस प्रकार रूसके लोग कर देते हैं, उसी प्रकार हम दे रहे हैं। जैसे रूसके करदाताओंका राजस्वके उपयोगपर कोई अधिकार नहीं है, वैसे ही भारतके लोगोंका भी नहीं है। जिस तरह रूसमें सेनाका जोर है, उसी तरह भारतमें है। अन्तर केवल इतना है कि रूसमें भारतके मुकाबले राज्यसत्ताका उपयोग अधिक बेढंगे तौरसे किया जाता है। रूसी लोगोंने अत्याचारका सामना करनेके लिए जो उपाय किया है वह हम भी काममें ला सकते हैं। बंगाल में स्वदेशी माल इस्तेमाल करनेका आन्दोलन चल रहा है। उसका स्वरूप रूसके आन्दोलनके समान है। यदि भारतवासी संगठित हो जायें, धैर्य रखें, स्वदेशाभिमानी बनें और अपने स्वार्थको छोड़कर स्वदेशके सुखका खयाल करें, तो आज ही हमारे बन्धन छूट सकते हैं। भारतका राज्य कार्य लोगोंकी नौकरीके द्वारा ही चल सकता है। रूसके लोगोंने जिस शक्तिका परिचय दिया वहीं शक्ति हम भी बता सकते हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-११-१९०५



१. १९०५ की क्रांति : जिसको बादमें लेनिनने १९१७ की क्रान्तिका पूर्वाभ्यास माना।