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रूस और भारत

प्रवासी-प्रतिबन्धक विभागकी ओरसे दिये गये थे। इसपर श्री वाजने प्रधान प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिकारीके पास दरखास्त की। उसने निर्देशोंके सम्बन्धमें श्री वाजको कोई भी जानकारी देनेसे इनकार करते हुए मामला खतम कर दिया, और कहा: "मैं अन्तविभागीय प्रबन्धोंके सम्बन्धमें बाहरसे की गयी पूछताछका जवाब देना जरूरी नहीं समझता।" दुर्व्यवहारकी बातसे इनकार नहीं किया जाता; सिपाहीकी कार्रवाईको शुरूसे अखीर तक सही करार दिया जाता है; और जब लोग यह जानना चाहते हैं कि उनसे जिन विनियमोंके पालनकी अपेक्षा की जाती है वे क्या है, तब जवाब मिलता है कि यह पूछना उनका काम नहीं है। यह प्रशासनका निराला ही तरीका है। अबतक तो लोगोंको उन कानूनोंके स्वरूपसे परिचित करा दिया जाता था जिनके पालनकी उनसे अपेक्षा थी; परन्तु अब सरकारने निश्चय किया है कि प्रवासी विभाग अपने विनियमोंका प्रशासन गुप्त रूपसे करे और, जिन लोगोंपर इन विनियमोंका असर पड़ता है, उनसे अपेक्षा की जाये कि वे, उन विनियमोंका अन्दाजा लगाकर, उनका पालन करें। हम सरकारका उल्लेख विशेष करते हैं, क्योंकि श्री हैरी स्मिथने ऐसा अनुप्रेरित होकर ही लिखा है। जहाँतक हमें मालूम है, उन्होंने जनतासे कभी किसी जानकारीका दुराव नहीं किया है। हम नहीं जानते कि सरकार अपने बहुमूल्य विनियमोंको गुप्त रखकर किस लाभकी आशा करती है। परन्तु, हम इतना अवश्य जानते हैं कि सिपाहीकी कार्रवाई, निसन्देह, गैर-कानूनी थी; और वादीको जानकारीसे वंचित रखकर किसी गैर-कानूनी कार्रवाईको शह देनेका प्रयत्ल, कमसे-कम कहा जाये तो, घोर अब्रिटिश है।

हम अपने सहयोगीको एक ऐसी बातको, जो किसी निन्द्य प्रसंगसे जरा भी कम नहीं है, प्रकाशमें लानेके लिए बधाई देते हैं। वह इसलिए और अधिक बधाईका पात्र है कि उसने इसपर कड़े शब्दोंमें सम्पादकीय टिप्पणी लिखी है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-११-१९०५


१४८. रूस और भारत

रूसमें इन दिनों जो खलबली मची हुई है, उससे हमें बहुत-कुछ समझना है। रूसका सम्राट' इस समय दुनिया-भरमें सबसे बड़ा तानाशाह है। रूसके लोग बहुत कष्ट भोग रहे हैं। गरीब लोग कर-भारके नीचे दबे हैं, पुलिस जनताको कुचल रही है और जारके मनमें जैसा झोंका आता है, लोगोंको उसीके मुताबिक करना पड़ता है। हाकिम सत्ताके नशे में चूर हैं। जनताके सुखका उन्हें कतई खयाल नहीं है। अपना बल कैसे बड़े, खुद ज्यादा पैसे कैसे बटोरें, इसे ही वे अपना कर्त्तव्य मानते हैं। जनताकी मन्शा बिलकुल नहीं थी, फिर भी जारने जापानसे लड़ाई करके रूसी सिपाहियोंके खूनकी नदी बहाई, और हजारों मजदूरोंके गाढ़े पसीनेको कमाईको जापानके समुद्र में फेंक दिया।

१. जार निकोलस द्वितीय (१८६९-१९१८), १८९४ में गद्दीपर बैठा ।

२. रूस व जापानकी लड़ाई १९०४ की फरवरी में शुरू हुई थी। इसमें रूसकी हारके बाद ५ सितम्बर