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१४१. लॉर्ड मेटकाफ़

भारतीय समाचारपत्रोंके तारक

राज्यकर्ता प्रजाको सुख पहुँचाये तभी उसे राज्याधिकार शोभा देगा," यह कहनेवाले और इसके अनुसार आचरण करनेवाले चार्ल्स थेऑफिलस मेटकाफ़का जन्म कलकत्तेमें ३० जनवरी, सन् १७८५ को हुआ था। १५ वर्षकी आयुमें उन्होंने पढ़ाई छोड़ी। विलायतमें जैसी-तैसी शिक्षा लेनेके बाद १६ वर्षकी आयुमें वे कलकत्ता [आये] । इस समय ईस्ट इंडिया कम्पनी अपने कर्मचारियों- पर बहुत सख्ती बरतती थी। इसलिए जो युवक काफी पढ़े-लिखे न होते, उन्हें नौकरीमें नहीं लिया जाता था। अत: लॉर्ड मेटकाफ़को कलकत्तेके कॉलेजमें दाखिल होना पड़ा। इस प्रकार कुछ समय तक शिक्षा लेनेके बाद चार्ल्स मेटकाफ़को एक छोटीसी जगह मिली। १९ वर्षकी आयुमें वे जनरल लेकके सरिश्तेदार बने। जनरल लेक और उनके मातहत अधिकारी दीवानीके काममें इस कच्चे जवानकी नियुक्तिसे नाराज हुए। चार्ल्स मेटकाफ़ चेत गये और उन्होंने लड़ाईके मैदानमें अपनी बहादुरी बतानेका निश्चय किया। डिगके किलेको तोड़नेमें उन्होंने पहल की और ऐसा अच्छा काम किया कि उनपर जनरल लेक खुश हो गये। तीन वर्ष बाद मेटकाफ़को बड़े गंभीर कामपर भेजा गया। पंजाबमें महाराजा रणजीतसिंहके साथ फ्रांसीसी लोग साँठ-गाँठ कर रहे थे । इस सांठ-गाँठको खत्म कर देनेका काम मेटकाफ़को सौंपा गया और उनकी कोशिशसे अंग्रेज सरकार और रणजीतसिंहके बीच समझौता हो गया। इससे लॉर्ड लेक इतने प्रसन्न हुए कि उनको दिल्लीमें २६ वर्षकी आयुमें रेज़िडेंटका काम सौंपा गया।

अब उन्होंने जनताको सुख पहुँचानेका काम शुरू किया। जमींदारोंके अधिकारोंको ठोस बुनियादपर कायम कर दिया। इस सम्बन्धमें उन्होंने इस प्रकार लिखा है:

हमें लोगोंकी जमाबन्दी लम्बी मुद्दतके लिए मुकर्रर कर देनी चाहिए, ताकि लोग काफी मुनाफा कमा सकें और हम लोगोंको दुआ दें। उनकी जमीन आगे चलकर हाथसे निकल जायेगी, ऐसा डर बना रहने के बजाय उनके मनमें यह विश्वास जमा देना चाहिए कि उनके हाथसे कोई जमीन लेनेवाला नहीं है। यह करेंगे तो लोगोंके मन शान्त होंगे और अपने ही स्वार्थ के कारण वे ऐसा मानेंगे कि हमारा राज्य बड़ा अच्छा है। कुछ व्यक्तियोंकी धारणा है कि यदि लोग स्वतन्त्र और बन्धनमुक्त हो जायेंगे तो भविष्य में अंग्रेजी राज्यको हानि पहुँचेगी। इस संभावनाको मान लिया जाये तब भी प्रजाके अधिकारोंको किस तरह छीना जा सकता है? उदार राज्यकर्ता इस प्रकारको दलीलोंको महत्त्व कैसे दे सकते हैं ? मनुष्यके राज्यके ऊपर खुदाका राज्य चलता है। वह महबूब इतना बड़ा है कि घड़ीमें राज्य छीन सकता है और घड़ीमें दे सकता है। उसके हुक्मके सामने इन्सानकी चतुराई काम नहीं दे सकती। इसलिए राज्यकर्ताओंका केवल यही फर्ज है कि प्रजाकी सुख-सुविधा बढ़ाते रहें। इस प्रकार हम अपना फर्ज अदा करेंगे तो भारतीय प्रजा हमारा उपकार मानेगी और दुनिया सदाके लिए हमारी

१. मूलमें यहाँ वाक्य अधूरा है।

२. आगरेके नजदीक एक किला; मूलमें 'लिग' दिया है। ५-९