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१३७. सर टॉमस मनरो

सर टॉम्स मनरो १७६१ के मई महीनेमें ग्लासगोमें उत्पन्न हुआ था। सन् १७८० में उसको ईस्ट इंडिया कम्पनीने मद्रासमें नियुक्त किया। इस समय अंग्रेजोंकी हालत बहुत खराब थी; हैदरअली अंग्रेजोंको निकाल बाहर करनेकी तैयारी कर रहा था। कम्पनीके अंग्रेज नौकर आपसमें ही लड़ रहे थे। ऐसे समयमें सर टॉमस मनरोने बहुत अच्छी सेवा की।

वह पांच वर्ष तक लड़ाईकी कार्रवाइयोंमें व्यस्त रहा। उसके बाद उसने दीवानीमें सेवा की। वह बहरामपुर तहसीलमें राजस्व विभागमें नियुक्त किया गया। उसने भी सर हेनरी लॉरेंसकी तरह इस अवसरका पूरा लाभ उठाया । वह लोगोंके साथ रहने लगा। वह उनसे चाहे जब मिलता, उनके साथ टहलने जाता और गरीब किसानोंकी लम्बी-लम्बी बातें तथा सुख-दुःखको कहानियाँ सुनता । जब वह लोगोंसे बातचीत करता तब अपने पास किसी भी गुमाश्ते या चपरासीको नहीं रखता था। वह बहुत सादा जीवन बिताता था। एक पत्रमें उसने लिखा है आज मैंने जईके आटे के बदले गेहूँके आटेका दलिया बनाया और प्रतीत होता है कि कल भी केलेके सिव। कुछ नहीं खाऊँगा। आजकल मैं गाँव-गाँव फिरता और किसानोंका लगान निर्धारित करता हूँ। इस समय मुझे और कुछ करना सूझता ही नहीं। मुझे अपने निजी कामके लिए एक घंटा भी नहीं मिलता। यह पत्र लिखते समय मेरे पास दस-बारह लोग बैठे हैं। प्रातः सात बजेसे लोगोंने आना शुरू कर दिया है। इस समय बारह बजे हैं। इस प्रकार मनरोने जिलोंमें सात वर्ष तक काम किया, लोगोंको खुश रखा और सरकारी मालगुजारीको मजबूत बुनियादपर रख दिया। अब उसकी बारी इससे भी अधिक उत्तरदायित्वका काम करनेकी आई। उसको कानरा तालुकेमें तालुकेदारकी जगह दी गई। कानराकी हवा बहुत खराब थी, फिर भी उसने वहाँ दम लिये बिना अपना कर्त्तव्य समझकर २६ महीने काम किया। वह लोगोंके दुःख सुनने में प्रतिदिन दस-दस घंटे लगाता था। वह लिखता है कि मैं समुद्रके किनारे किसी बढ़िया मकानमें रहनेकी अपेक्षा लोगोंके बीच छोटी-सी छोलदारीमें रहकर उनके मनोंको ज्यादा आकर्षित कर सकता हूँ। और आज वे लोग हमारी वफादार रैयत बन रहे हैं। वह सोनेके लिए एक बाँसकी चारपाई, एक हल्का गद्दा और एक तकिया रखता था। वह सवेरे-सवेरे उठनेपर बाहर निकलते ही, लोगोंके जो झुंड जमा हो जाते थे उनके साथ बातचीत करता था। फिर वह भोजनके पश्चात् तुरन्त नौकरोंको आदेश देता, चिट्ठियाँ लिखता और फिर कचहरी जाता। शामको पाँच बजे थोड़ा-सा कुछ खा लेता और फिर रातको आठ बजे तक कचहरीमें बैठता। और कभी-कभी आधी रात तक लोगोंकी बातें सुनता। उसने इस प्रकार कानरा तालुकेके लोगोंको सुख-शान्ति दी। उसके बाद उसको निज़ामके परगनेमें और भी महत्त्वपूर्ण काम दिया गया। वहाँ पिछले वर्षों में अकाल पड़नेके कारण लोग कंगाल हो गये थे। लूटपाट बढ़ गई थी। बदमाशोंका सब जगह बोल-बाला था । सर टॉमस मनरोने अपने सतत उद्योगसे इस राज्यको भी हरा-भरा कर दिया।

इस प्रकार सेवा करते हुए मनरोको २७ वर्ष हो गये थे। इसलिए वह छुट्टीपर इंग्लैंड चला गया और वहाँ उसने विवाह कर लिया। सन् १८१४ में मद्रास इलाकेमें न्याय-विभागकी जाँचके लिए एक आयोग नियुक्त किया गया। वह उसका अध्यक्ष बनकर फिर यहाँ आया। उसने इस समय हमारे देशवासियोंके प्रति अपनी सद्भावना भली भाँति व्यक्त की। और न्याय- विभागमें देशी लोगोंको ऊँचे पद देनेका परामर्श दिया। इस आयोगके काममें १८१७ के मराठोंके