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चायसे हानियाँ

करते। वे राज्यका उपभोग अपने अच्छे कामोंके बलपर कर रहे हैं । यह भी खुदाई नियम है। यदि हम ऐसे कामोंका अनुसरण करेंगे तभी हमारे मनोरथ पूरे हो पायेंगे।

हम नेल्सनके समान हिम्मतवर हों, उसके समान अपने फोंको समझें। नेल्सनकी जातिकी तरह हममें भी देशभक्ति पैदा हो। मैं हिन्दू, तुम मुसलमान, मैं गुजराती, तुम मद्रासी, ये सब भेद- भाव भुल जायें। मैं और मेरा, यह खत्म हो और मैं भारतीय, तुम भी भारतीय, बस यह बना रहे। दोनों साथ-साथ उबरेंगे अथवा साथ-साथ डूबेंगे, यह विशिष्ट निश्चय हम बहुत-से लोग करेंगे, तब स्वतन्त्र होंगे। हम जबतक पंगु रहेंगे तबतक लाठीका सहारा लिए बिना कैसे चल सकेंगे?

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१०-१९०५

१३६. चायसे हानियाँ

इंग्लैंडमें साउथवर्ककी नगर-परिषदने चायके लाभों और अलाभोंकी जाँच करवाई है। इनमें से कुछ जानने योग्य बातें हम नीचे दे रहे हैं।

नौवीं शताब्दीमें चीनी लोगोंने चाय पीना शुरू किया और तबसे वे लोग चाय पीते आ रहे हैं। सन् १६६० में इंग्लैंडमें चायका प्रवेश हुआ। अठारहवीं शताब्दीमें वहाँ चाय फैल चुकी थी और उस शताब्दीके अन्तमें प्रतिवर्ष दो करोड़ रतल (पौंड) चाय वहाँ आती थी। १९ वीं शताब्दीके पहले दशकमें इंग्लैंडमें चायकी खपत प्रति व्यक्ति डेढ़ रतल थी लेकिन अन्तिम दशकमें उसकी खपत इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि अब प्रत्येक व्यक्तिके पीछे छः रतल चाय खपती है।

चायके विरुद्ध सबसे पहली आवाज उठानेवाला सुप्रसिद्ध जॉन वेसली था । वह बहुत बड़ा धर्म- वक्ता था। उसे चक्कर आया करते थे; परन्तु उसने चायपर सन्देह नहीं किया। क्योंकि सब यही मानते थे कि चाय पीनेसे तो लाभ ही होता है। एक बार वह अचानक बेहोश हो गया । इसपर उसने चाय छोड़ देनेका निर्णय किया और उसके बाद उसको चक्कर आना बन्द हो गये। सुप्रसिद्ध डॉक्टर सर एंड्रयू क्लार्कने लिखा है कि चायसे सब ज्ञानतन्तु कमजोर पड़ जाते हैं इंग्लैंडमें हजारों स्त्रियाँ वर्षों दुःखी रहती हैं। सिरमें दर्द रहता है, पैर टूटते हैं, चक्कर आते हैं इस सबका मुख्य कारण चाय है, ऐसा माना जाता है। साउथवर्कमें जिस व्यक्तिने चायकी जांच की वह लिखता है कि चायको उबालनेसे तो बड़ा नुकसान होता है। अगर चायके बिना काम चले तो अच्छा है। यदि चायकी आदत न छूट सके तो उसका कहना है कि चायपर उबलता हुआ गर्म पानी डालकर उसे तुरन्त गिलासमें छान लिया जाये। उसका रंग जरा भी लाल नहीं होना चाहिए, बल्कि धासका-सा होना चाहिए।

हम लोगोंमें चाय पीनेका चलन बिलकुल अभी-अभी चला है। भारतमें उसकी कुछ भी आवश्यकता नजर नहीं आती। फिर भी अगर लोगोंको गोरोंकी नकल करके कोई-न-कोई चीज पीनी ही हो तो काफी या कोको पीना कम हानिकर है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१०-१९०५