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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसी नेल्सनने अपनी बारह सालकी उम्रसे पहले ही "डर क्या चीज है" यह प्रश्न अपनी दादीसे किया था। उसकी दादी जवाब नहीं दे सकी और वह भरा तबतक उसकी डरसे जान-पहचान नहीं हुई। उसने बारह वर्षकी उम्रसे समुद्रमें जाना और दूसरे मनुष्योंके लिए अशक्य बहादुरीके काम करना आरम्भ किया।

१७८९ में फांसमें विप्लव हुआ। नेपोलियन बोनापार्ट उठ खड़ा हुआ। उसने समस्त यूरोपको जीत लेनेका निश्चय किया और कहा जाता है कि यदि उस समय नेल्सन न होता तो वह यूरोपको जीत लेता। नेपोलियनको केवल इंग्लैंड जीतना बाकी रह गया था। उसने अपने कप्तानोंसे कहा: 'मेरे लिए छ: घंटे तक इंग्लिश चैनल मुक्त कर दो, और मैं इंग्लैंडको जीत लूंगा।" नेल्सनने उसकी आशाएँ पूरी नहीं होने दीं। इस समय फ्रांसीसी बेड़ेके साथ अंग्रेजी बेड़ेका भयंकर युद्ध हुआ। तीन बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी गईं। उनमेंसे एकमें नेल्सनका हाथ कट गया, दूसरीमें उसकी एक आँख जाती रही और तीसरीमें उसकी जान ही चली गई।

इनमें ट्रॉफालगरकी लड़ाई सबसे बड़ी थी। अगर इस बार हार हो जायेगी तो इंग्लैंडकी इज्जत ही चली जायेगी। नेल्सन यह बात समझता था और यह समझकर उसने तैयारी की थी। उसके मातहत अधिकारी और सैनिक उसको पूजते थे। ऐसा कोई खतरा न था जो उसने अपने ऊपर लिया न हो। जब उसने नीलकी लड़ाई में अपना हाथ खोया तब वह बेपरवाह होकर स्वयं अपने घायल सैनिकोंकी सार-सँभालमें लगा था। उसने अपनी पीड़ाकी परवाह नहीं की। इसका अर्थ यह है कि नेल्सन बिलकुल बेखौफ था। उसका यह निश्चय था कि जबतक एक भी अंग्रेज नाविक जीवित रहता है, तबतक हार नहीं मानेंगे। उसकी फौजका जोश भी ऐसा ही था। अपने 'इनविसिबल जहाजमें वह सिंहकी तरह गर्जता रहता था। अक्टूबरकी १९ तारीखको महत्त्वपूर्ण लड़ाई हुई। नेल्सनने झंडा फहरा कर घोषित किया कि इंग्लैंड अपेक्षा करता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्यका पालन करेगा"। एक फ्रांसीसी जहाज और नेल्सनका जहाज " एक-दूसरेसे भिड़ गये। गोलोंकी वर्षा होने लगी। नेल्सन घायल हो गया। उसने आदेश दिया, 'मुझे मेरे केबिनमें पहुंचा दो। उसने अपने हाथसे अपने बिल्ले और तमगे आदि ढंक दिये ताकि किसीको पता न चले कि नेल्सन घायल हो गया है। लड़ाई चलती रही। असहनीय वेदना सहते हुए भी उसने आदेश देना जारी रखा। उसे पता चला कि फ्रांसीसी जहाज हार रहे हैं और अंग्रेजोंकी जीत हो रही है। इस प्रकार उसने अपना फर्ज अदा करते हुए और ये अन्तिम शब्द कहते हुए अपने प्राण त्यागे : "हे ईश्वर, मैं तेरा आभारी हूँ कि मैंने अपना फर्ज पूरा किया।"

अंग्रेजी बेड़ा तबसे सर्वोपरि है। नेपोलियन निराश हो गया और अंग्रेजोंका जोर बढ़ गया। नेल्सन मर जानेपर भी अमर है। उसकी हर बात और हर नसीहत अंग्रेजोंके मनोंमें बस गई है और आज भी उसके गीत गाये जाते हैं। सौ वर्ष बाद नेल्सन मानो कब्रमें से उठ खड़ा हुआ हो, ऐसा पिछले सप्ताह दिखाई देता था।

जिस जातिमें इस प्रकारके हीरे पैदा हों और जो जाति इस प्रकारके हीरोंको इतने यत्नसे सँभाल कर रखे वह जाति आगे क्यों न बढ़ेगी और समृद्ध क्यों न होगी?

हमें उस जातिसे ईर्ष्या नहीं करनी है, परन्तु ऐसी बातोंमें उसकी नकल करनी है। जो लोग खुदा या ईश्वरमें श्रद्धा रखते हैं वे समझ सकते हैं कि उसकी मर्जीके बिना अंग्रेज राज नहीं

१. सन् १८०५में, जब फ्रांसीसी बेड़ा ध्वस्त कर दिया गया और नेल्सन मारे गये।

२. सन् १७९८में, जब नेल्सनने फ्रांसीसियोंको हराया।

३. नेल्सनके जहाजका नाम गांधीजीने गुजरातीमें 'अजीत' लिखा है ।