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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हिमायत और विनती करेंगे। अगर यह काम हम न करेंगे तो कौन करेगा? हमारा इरादा लोगोंको खुश करनेके मतलबसे कुछ करनेका न तो था और न है। कडुआ चूंट पिलाना हमारा फर्ज है। हम लोगोंमें प्लेग फैलता है और उससे जाने जाती है, यह तो साफ नजर आता है। लेकिन इससे सारी कौमको आघात पहुँचता है। जब डर्बन, केप टाउन और जोहानिसबर्ग में प्लेग हुआ था तब भारतीयोपर जो आघात पहुँचा था, वह भुलाया नहीं जा सकता। प्लेगको खत्म करनेका आसानसे आसान उपाय यह है कि किसीको प्लेगकी बीमारी हो तो उसे तुरन्त जाहिर कर दिया जाये । बम्बईमें सन् १८९६ में जब पहली बार प्लेग फैला तब जनता और डॉक्टरोंने उसे दबाया नहीं। उस मौकेपर जरूरी कार्रवाई की जाती तो मुमकिन था कि जो लाखों आदमी मरे वे बच जाते। अब भी अगर लोगोंको इस सम्बन्धमें समझाया जा सके तो प्लेग जड़से खत्म हो सकता है। भारतमें ऐसा नहीं किया जा सका, इसके कई कारण हैं। वहाँ जनता कंगाल और नासमझ है। यहाँ ऐसी स्थिति नहीं है। जो लोग पाँच हजार मीलका सफर करते हैं और दुश्मनोंके बीच रहकर अपनी रोटी कमा सकते हैं उनको नासमझ कहा ही नहीं जा सकता। अगर इस देश में रहकर हम संक्रामक रोगोंमें तीमारदारी करना नहीं जानते तो इसका कारण केवल हमारा हछ है। इसलिए जो लोग अनपढ़ मनुष्योंका मार्गदर्शन करनेकी स्थितिमें हों, हमारी समझमें उनका इस सम्बन्धमें विशेष कर्त्तव्य यह है कि वे अनपढ़ लोगोंकी आँखें खोलें और उन्हें सही मार्ग दिखायें। यह कहने में हमें जरा भी डर नहीं है। अगर हम डरकर झूठी चापलूसी करें तो आजतक हमने जो कुछ लिखा है उसपर पानी फिर जायेगा। हम लोगोंको बार-बार अपनी टेक बनाये रखने, सभ्यताको कायम रखने और हिम्मतसे अपना फर्ज अदा करनेके लिए कहते हैं। हर हफ्ते सर हेनरी लॉरेंस, एलिजावेथ फ्राइ वगैरह बहादुर स्त्री- पुरुषोंके जीवन-वृतान्त देते हैं और ऐसे वीरोंके समान बननेकी सिफारिश करते हैं। अन्तमें सभी पाठकोंसे हमारी यह विनती है कि वे हमारे लेखोंका सही-सही अर्थ लगायें। हम लोक-सेवा करने में कभी भूल भी कर सकते हैं। लेकिन वह जान-बूझकर न होगी। जिनकी निगाहमें हमारी ऐसी भूलें आयें वे हमको बता दें और हम इस तरह भूलें बतानेवालोंका अहसान मानेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१०-१९०५

१३३. आस्ट्रेलिया और जापान

जान पड़ता है, आस्ट्रेलियाकी सरकारने जापानको शक्तिको समझ लिया है। आस्ट्रेलियामें प्रवासके हेतु जानेवाले जापानी विद्यार्थी और व्यापारियोंको बिना रोक-टोक आने देनेका निर्णय जाहिर किया गया है और यह भी बताया है कि जापानको भावनाको ठेस न पहुँचे, इस तरहका सुधार वह अपने प्रवास कानूनमें कर देगी। इसका लाभ भारतीयोंको भी मिलना सम्भव है। जापानकी जीतकी जड़ें इतनी फैली हुई हैं कि हम इस समय उसके समूचे फलोंको देख नहीं सकते। पूर्वी जनताकी खुमारी टूटती मालूम हो रही है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१०-१९०५

१. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ६३ और ३८८ ।