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हमारा कर्तव्य

(१५) इन सब कागजोंको एक लिफाफेमें बन्द करके उसपर “गुजराती सम्पादक, इंडियन ओपिनियन', फीनिक्स" का पता लिखें और ऊपरके कोनेमें गुजराती अक्षरोंमें "परवाने बाबत" लिखकर तुरन्त भेजें।

इस प्रकार जाने-पहचाने व्यक्ति प्रत्येक स्थानसे सावधानीपूर्वक समाचार भेजेंगे तो हमारी धारणा है कि बहुत लाभ होगा। यह काम बहुत सरल है और बिना परिश्रम तथा बिना पैसे हो सकता है। हम इस जानकारीका उपयोग अंग्रेजी लेखों और सरकारके साथ पत्र-व्यवहारमें करना चाहते हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१०-१९०५

१३१. बहादुर बंगाली

जान पड़ता है कि इस समय बंगाल सचमुच जाग उठा है। हर सप्ताह समाचार आते हैं कि ज्यों-ज्यों सरकार बंगालके विभाजनके लिए तत्पर हो रही है त्यों-त्यों बंगाली उसके प्रतिरोधके लिए कमर कस रहे हैं। उधर सरकारने धूमधामके साथ ढाकामें नया गवर्नर बैठानेकी विधि सम्पन्न की, उसी दिन' कलकत्ते में बंगालियोंने हड़ताल की और विराट सभा करके, जिसमें १,००,००० लोग इकट्ठे हुए थे, अपनी एकताके सूचक एक संघ-भवनका शिलान्यास किया। स्वदेशी वस्तुएँ ही खरीदने और उन्हींको व्यवहारमें लानेका आन्दोलन जोर पकड़ता जा रहा है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१०-१९०५

१३२. हमारा कर्तव्य

हमें मालूम हुआ है कि कुछ भारतीय हमारे प्लेग-सम्बन्धी लेखसे नाराज हुए हैं। इसका हमें खेद है लेकिन इससे आश्चर्य नहीं होता। सामान्यत: लोगोंका ध्यान इस ओर दिलानेपर तो हमारी प्रशंसा की जानी चाहिए। ऐसा न करके हमारा दोष बताया जाता है, इसकी वजह यह है कि लोग दोष बताने में बिलकुल झिझकते नहीं। भारतमें बहुत-से गाँव प्लेगसे बरबाद हो गये हैं, बहुत-से कुटुम्ब बिलकुल मिट गये हैं और लोगोंमें भगदड़ मची हुई है। भारतके बाहर जहाँ-जहाँ प्लेग पहुँचा है वहाँ उसका सबब अकसर हम लोग ही होते हैं। और उन इलाकोंमें से प्लेग जल्दी दूर होनेका सबब यह देखने में आता है कि उसे दूर करनेका इन्तजाम दूसरे लोगोंके हाथों में होता है। ऐसे मौकोंपर पत्रकारोंका यानी हमारा फर्ज क्या है ? हम लोगोंको खुश रखनेकी खातिर उनके दोषोंको छिपाकर वाहवाही लूट सकते हैं, लेकिन ऐसा करके हम अपने कर्त्तव्यसे च्युत होंगे। हमारा काम लोगोंकी सेवा करना है। उनके अधिकारोंकी रक्षा करते हुए जो भी दोष दिखाई दें वे हमें बताने ही चाहिए। अगर हम ऐसा न करें और झूठी चापलूसी करते रहें तो हमारा यह कार्य शत्रुके समान होगा। हम शुरूमें ही कह चुके हैं कि हमारे शत्रु जब हमारे बारेमें कोई गलत बात कहेंगे तब हम पूरी हिम्मतसे बचाव करेंगे। उसी तरह जब हम अपने लोगोंमें ही दोष देखेंगे तब उसको भी साफ-साफ बतायेंगे और उसको दूर करनेकी बेखट

१. अक्तूबर १६, १९०५ को।