पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/१४९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१२९. नेल्सन-शताब्दी महोत्सव : एक सबक'

पिछले हफ्ते जो नाम साम्राज्यके एक छोरसे दूसरे छोर तक गूंज उठा था, वह था- -होरे- शियो नेल्सन । इस महीनेकी २१ तारीखको हुए समारोहोंसे बहुत ही गम्भीर विचार उत्पन्न होते हैं। भारतीयोंको तो उनसे स्पष्ट ज्ञात हो जाना चाहिए कि ब्रिटेनकी सफलताका रहस्य क्या है। मैक्समूलर अपने लेखोंमें इस नतीजेपर पहुँचे हैं कि भारतीय दर्शनमें जीवनका अर्थ एक छोटेसे शब्द -- स्वधर्म (कर्त्तव्य) से सूत्ररूपमें व्यक्त किया गया है। परन्तु, कदाचित्, आजके औसत दर्जे के भारतीयके आचरणमें जीवनका यह अर्थ नहीं झलकता। ऐसी स्थितिमें लॉर्ड नेल्सनके जीवनके अनुशीलनसे आद्योपान्त स्वधर्म-पालनका अत्यन्त हृदयग्नाही उदाहरण उपस्थित होता है

"इंग्लैंड अपेक्षा करता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्यका पालन करेगा" -यह ऐतिहासिक मन्त्र ब्रिटिश हृदयोंमें सुप्रतिष्ठित हो गया है। यह मन्त्र अपने उद्घोषकके अविचल कर्तृत्वसे पवित्र हो गया था, और अब एक सदी तक कार्यरूपमें परिणत होते रहनेसे समादरणीय बन गया है। इंग्लैंडकी सफलताका माप इसी बातका माप तो है कि अंग्रेजोंने अपने जीवनमें इस मन्त्रको कहाँतक ग्रहण किया है। यदि उस साम्राज्यमें कभी सूर्य अस्त नहीं होता, जिसका एक संस्थापक स्वयं नेल्सन था, तो इसका कारण यह है कि उसके सपूतोंने अबतक कर्तव्य-पथका अनुसरण किया है।

आज साम्राज्यमें नेल्सनकी जितनी पूजा होती है, उतनी और किसीकी नहीं- इसलिए नहीं कि वह एक बहादुर नौसैनिक था, इसलिए भी नहीं कि उसने कभी यह नहीं जाना कि भय क्या चीज है, बल्कि इसलिए कि वह कर्तव्य-निष्ठाकी सजीव प्रतिमा था। उसकी दृष्टिमें उसका देश पहले था, और अपना अस्तित्व पीछे। वह लड़ा, क्योंकि लड़ना उसका कर्तव्य था। फिर क्या आश्चर्य कि उसके अनुगामियोंने, वह जहाँ-कहीं भी गया, उसका अनुसरण किया। इंग्लैंडको समुद्रका स्वामी उसीने बनाया था। परन्तु, उसकी महानता इससे भी अधिक थी। उसकी सेवामें स्वार्थका लेश भी न था। उसकी देशभक्तिका स्वरूप शुद्धतम था।

दक्षिण आफ्रिका जैसे महादेशमें हम नेल्सनके बताये सही रास्तेसे बराबर भटकते रहते है। अतः, अच्छा हो, अगर हम उसके जैसे महत् चरितका स्मरण करें। उससे हमारे पूर्वग्रह कम होने चाहिए, और हमें अपने अधिकारोंकी अपेक्षा दायित्वोंका खयाल अधिक करनेकी प्रेरणा मिलनी चाहिए। विशेषतः यदि दक्षिण आफ्रिकाके कुछ-कुछ अरुचिकर जीवनसे भारतीयोंके मनमें अपने साथ कठोर बरताव करनेवाले अंग्रेजोंके प्रति कटुता पैदा हो गई है तो, उनको गत सप्ताहकी घटनाओंसे यह भरोसा होना चाहिए कि अंग्रेज फिर भी नेल्सनके देशवासी है, और जबतक अपनी स्मृतिमें नेल्सनको सहेजे हैं, तबतक वे कर्तव्य-पथका सर्वथा त्याग नहीं कर सकते। इसमें हमारे लिए आशाका एक हेतु, और अंग्रेजोंके दोषोंके बावजूद, ब्रिटेनको प्यार करनेकी प्रेरणा निहित है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१०-१९०५

१. यह “एक भारतीय द्वारा प्रेषित" संवादके रूपमें छपा था।