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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जा रहा है। जहाँतक पाँचेफ्स्ट्रमकी नीतिका सम्बन्ध है, यह बात सर्वथा मिथ्या है, क्योंकि यह भली भांति सिद्ध किया जा चुका है कि पुराने जमे हुए व्यवसायके कारण जिन आरतीयोंके यहाँ निहित अधिकार है, इस जिलेके लोगोंको इच्छा उनका अधिकसे-अधिक लिहाज करने की है। परन्तु जब हमको भारतीयोंके ऐसे नये प्रवासको सहन करने के लिए कहा जायेगा, जिससे कि एक असन्दिग्ध बुराई और भी मजबूत होगी, तब हमें डर है कि रियायतको भावना समाप्त हो जायेगी।

हमारी समझमें यह बात नहीं आती कि केवल कुछ जरूरी मुनीमोंको यहाँ बुलानेसे 'ट्रान्सवालमें हजारों भारतीय प्रजाजन कैसे भर जायेंगे" ? किन्तु शायद 'बजट'से यह आशा भी नहीं की जा सकती कि वह एशियाई समस्याको थोड़ी साधारण समझदारीकी नजरसे देखेगा। हमारी टिप्पणीकी न्याय्यता, निश्चय ही, स्वयं प्रकट है। नये भारतीयोंका आगमन सर्वथा बन्द करनेका मतलब यह होगा कि अन्तमें अधिकतर भारतीय उपनिवेशसे निकाल दिये जायें; और यह स्थिति ट्रान्सवालकी आबादीके एक हिस्सेको कितनी ही अभीष्ट क्यों न हो, वह हमसे इस मामलेको उसी दृष्टिसे देखनेकी आशा भला कैसे कर सकता है! हम दावेके साथ कहते हैं कि हमारी टिप्पणीमें ऐसी कोई बात नहीं है जिससे उपर्युक्त निष्कर्षको उचित माना जा सके। हमने कभी इस विचारका समर्थन नहीं किया कि ट्रान्सवालको भारतीयोंसे भर देना चाहिए। हाँ, अपनी इस बातपर हम अवश्य कायम है कि यदि मामूली न्याय भी करना हो तो ट्रान्सवालमें पहलेसे बसे भारतीयोंको, अपनी मुनीमों और ऐसे ही अन्य सहायकोंकी आवश्यकता, भारतसे पूरी करनेकी इजाजत होनी चाहिए- फिर चाहे वे ट्रान्सवालके पुराने निवासी हों, चाहे न हों। इन आदमियोंकी संख्या प्रतिवर्ष बहुत थोड़ी ही होगी। शायद हमारे सह्योगीको ज्ञात न हो कि यह सहूलियत केप और नेटालके स्वशासित उपनिवेशों तक में दी जाती है, यद्यपि वहाँ भी प्रतिबन्धक कानून मौजूद हैं। हमें यह कहनेमें संकोच नहीं कि कुशल सहायकोंकी आवश्यकता पूरी करनेके लिए भी भारतपर निर्भर रहनेका अधिकार भारतीय व्यापारियोंको न देनेका निश्चय ही यह अभिप्राय है कि यहाँ पहलेसे बसी भारतीय आबादीको धीरे-धीरे भूखा मारा जाये। हमने जो स्थिति यहाँ प्रकट की है वह किसी भी प्रकार नई नहीं है। हम बजट'का ध्यान लॉर्ड मिलनरके खरीतेकी ओर दिलाते है। उसमें उन्होंने स्पष्ट शब्दोंमें कहा है कि शिक्षित, साधन-सम्पन्न और योग्य भारतीयोंको -वे चाहे नये प्रवासी हों, चाहे नहीं-- ट्रान्सवालमें आनेसे रोका नहीं जाना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २८-१०-१९०५