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१२६. मानपत्र : प्रोफेसर परमानंदको

जोहानिसबर्ग

अक्टूबर २७, १९०५[१]

सेवामें

प्रोफेसर परमानन्द, एम° ए°, इत्यादि

जोहानिसबर्ग
प्रिय महोदय,

हम लोग, जिनके हस्ताक्षर नीचे दिये हुए हैं, स्वागत समितिकी ओरसे आपके जोहानिसवर्ग पधारनेके अवसरपर आपका हार्दिक स्वागत करते हैं।

महोदय, आप उन स्वार्थत्यागी कार्यकर्ताओंमें से हैं जिन्हें भारतने आर्यसमाजसे पाया है। अपने साथियों और सहयोगियोंकी भाँति आपने भी धर्म और शिक्षाके निमित्त अपना जीवन अर्पित कर दिया है। अतएव आपके प्रति आदर प्रदर्शित करनेमें हम लोग गौरव अनुभव करते हैं।

हम आशा करते हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें आपके कुछ समयके लिए पधारनेके फलस्वरूप आर्यसमाज दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंके बीच काम करनेके लिए कुछ त्यागी शिक्षा-शास्त्रियोंको भेजनेका निर्णय करेगा। दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंकी एक सबसे बड़ी आवश्यकता ठीक ढंगकी शिक्षा है।

हमें आशा है कि आप जितने दिन यहाँ हैं उतने दिन आनन्दसे रहेंगे और लौटते समय अपने साथ यहाँकी कुछ सुखद स्मृतियाँ ले जायेंगे।

आपके विश्वस्त,

एम° एस° पिल्लेवी° एम° मुदलियार,

अध्यक्ष


मूलजी पटेलएन° वी° पिल्ले
जी° ए° देसाईएन° ए° नायडू
बी° दयालजीएस° ए° मुदलियार
सी° पी° लच्छीरामएस° पी° पाथेर
वी° जी° महाराजएम° ए° पदियाची
सी° केवलरामत्रीकमदास ब्रदर्स
मो° क° गांधी

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ४-११-१९०५
 
  1. ४-११-१९०५ के इंडियन ओपिनियनसे मालूम होता है कि यह मानपत्र २८ अक्तूबरको एक सार्वजनिक सभामें दिया गया था। उस अवसरपर प्रोफेसर परमानन्दने अपना प्रथम भाषण दिया था। गांधीजी उस सभा में थे और उन्होंने अध्यक्षके भाषणका अनुवाद किया था।