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१२४. सिगरेटसे हानि

दक्षिण आस्ट्रेलियाकी सरकारके देखने में आया है कि सिगरेट पीनेसे लोगोंके पैसे खर्च होते हैं और उनके शरीरोंको बहुत क्षति पहुँचती है। सिगार पीनेसे जितना नुकसान होता है उससे अधिक सिगरेट पीनेसे होता है, क्योंकि सिगरेट छोटी और सस्ती होनेके कारण हदसे ज्यादा पी जाती है। यह सोचकर दक्षिण आस्ट्रेलियाकी सरकारने सिगरेट बनानेके कारखानोंकी बन्दी और सिगरेट बेचनेकी मनाहीका कानून बनानेका निश्चय किया है।

आजकल हम छोटे-बड़े सभी लोगोंमें सिगरेट पीनेकी लत बहुत घर कर गई है। यह रिवाज अंग्रेजोंकी नकल है। पिछले जमानेमें यद्यपि गाँवड़ी बीड़ी पीनेका रिवाज था, फिर भी लोग उसमें मर्यादा पालते थे। वे चाहे जहाँ बीड़ी पीनेमें शरमाते थे, इसलिए निश्चित समय एकान्तमें जाकर पीते थे। रास्तेमें अथवा चलते-फिरते पीना बुरा माना जाता था और घरसे बाहर पीनेका रिवाज कम था। इसीसे कहा है कि

खाये सो खून बिगाड़े, पीये सो घरको;

सूंघेसो बसन बिगाड़े, तमाखू बिस तनको।

अब तो अंग्रेज लोग चाहे जहाँ सिगरेट पीनेमें कुछ विचार ही नहीं करते और हम लोग भी उनकी नकल करते हैं। दक्षिण आस्ट्रेलिया जैसे मुल्कमें सिगरेट पीनेकी हानियाँ समझमें आने लगी है, तो हमें आशा है कि हम लोग भी इस सम्बन्धमें कुछ विचार करेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २१-१०-१९०५

१२५. राजा सर टी० माधवराव

सर माधवराव १८२८ में कुम्भकोणम शहरमें जन्मे थे। उनके पिता श्री आर० रंगराव बावण- कोरके दीवान थे और उनके चाचा राय आर० व्यंकटराव बावणकोरके दीवान तथा कमिश्नरके पदपर रहे थे। सर माधवरावने अपनी बाल्यावस्था मद्रासमें बिताई और वहीं उन्होंने शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेजमें श्री पॉवेलके पास अध्ययन किया था। माधवराव परिश्रमी विद्यार्थी थे और गणित तथा विज्ञानमें बड़े होशियार थे। उन्होंने खगोल विद्या श्री पविलके घरकी सीढ़ियोंपर थे बैठकर सीखी थी और उसके लिए खुर्दबीन तथा दूरबीन यन्त्र बाँससे स्वयं अपने हाथसे बनाये थे।

श्री पविलने ऐसे होशियार शिष्यको अपने पाससे जाने देना नहीं चाहा, इसलिए उन्हें अपने यहाँ गणित और भौतिक शास्त्रके शिक्षकके स्थानपर नियुक्त कर दिया। इसके बाद उनको एकाउन्टेन्ट जनरलके दफ्तरमें एक अच्छी जगह मिल गई और कुछ समय बाद उनसे त्रावणकोरके राजकुमारके शिक्षककी हैसियतसे काम करनेका प्रस्ताव किया गया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। पहले-पहल वे इस प्रकार एक देशी रियासतकी सेवामें प्रविष्ट हुए। उनके मार्ग-दर्शनमें राजकुमारोंका विद्यार्थी जीवन बहुत ही सफल रहा, और शासन भी उन्होंने बहुत अच्छा किया।

१. मद्रासमें ।